मेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति
प्रद्युम्न आर चौरेमेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति
इस बार बादलों को खोजा है
पहले ख़ुद छा जाते थे
इस बार शब्दों को ढूँढ़ा है
पहले ख़ुद आ जाते थे
बेतुके से लगने लगे
अपने ही शब्द
ये देख कर मैं रह
गया अचंभित, स्तब्ध
इस बार लहरों को नहीं
समंदर को चुना था
इन्होंने ही मेरा
पूरा संसार बुना था
राह उनकी काँटों से
भरी रही
मगर मन रूपी घास
हमेशा हरी रही
जीवन में कठिनाइयाँ आईं
मगर कभी भी
ग़लत राह
नहीं अपनाई
जब विशाल पेड़ थे
तो सबने ली छाया
कुछ टहनियाँ क्या कटीं
ख़ुद को अकेला पाया
टहनियों के कटने से
कमज़ोर नहीं पड़े
और मज़बूती व् हिम्मत से
हर समस्या से लड़े
विपरीत परिस्थितियों से
लड़ने की दम थी
सम्मान कम मिला
क्यूंकि हरियाली कम थी
मन का सरोवर
दर्द से भरा होगा
अकेला ही सारे बोझ
सेह रहा होगा
उस सरोवर की एक बूँद भी
उनके चेहरे पर नही दिखती
मेरे पिता
मेरी अभिव्यक्ति
क़ुद की इच्छाओं का गला घोंट
मेरी तम्मना पूछते हैं
मेरे लिए अनेको बार
ख़ुद से ही झूझते हैं
उनमें है सहनशीलता की
अनोखी शक्ति
मेरे पिता
मेरी अभियव्यक्ति
डगमगा जाता हूँ अगर
आपकी सीखों से सँभलता हूँ
पैसों की इस दुनिया में
मै संतोष की राह पर चलता हूँ
मुझसे पहले खुलती है
मेरे बाद बंद होती है
चमक दमक से भरी वो आँखें
मुझसे छुपकर रोती हैं
वो कहते है चंद रुकावटों
से ज़िन्दगी थम नहीं सकती
मेरे पिता
मेरी अभिव्यक्ति