मेरा किरदार

17-01-2018

मेरा किरदार

प्रकाश त्रिपाठी

इस जीवन के रंगमंच में,
न जाने कितने कलाकार हैं,
सभी की अपनी भाषा शैली,
सभी के अपने विचार हैं॥

इनके अंतर्मध्य मैं,
अपने वजूद को ढूँढ़ता हूँ,
मगर अभी भी अनजान हूँ,
कि मेरा क्या किरदार है॥

सभी को अपने कर्मों की,
भी करनी भरपाई है,
मगर प्रबल प्रारब्ध की भी,
अपनी अनमिट लिखाई है॥

ये प्रारब्ध ऐसी स्याही है,
जिसका कोई रंग नहीं,
जो भी लिखा हुआ है,
उसे मिटाने का दूजा ढंग नहीं॥

किसी के पन्नों पर,
इसकी सुन्दर लिखाई है,
तो किसी के पन्नों पर,
सिर्फ़ एक ही पाई है॥

मगर कहते हैं प्रारब्ध भी,
पूर्वजन्म आधारित है,
इस जन्म का प्रारब्ध,
पूर्वजन्म के कर्म करते निर्धारित हैं॥

ये ऐसा कालचक्र है जो,
यूँ ही अनवरत चलता रहता है,
इसकी यात्रा नहीं पूरी होती कभी,
इसका गंतव्य अनन्त होता है॥

काल समय – समय पर,
अपनी चालें चलता है,
इंसान के रूप में,
ग्रह – नक्षत्र के मोहरे बदलता है॥

यह पराजित करता है मुझको,
मगर मेरे हौसलों से परस्त होता है,
मगर मिलता है वही,
जो नियति में होता है॥

मगर काल की इस यात्रा में,
मैं किस पड़ाव पर हूँ,
कितने चौराहे शेष हैं,
और मैं किस राह पर हूँ॥

कितनी परिस्थितियों के जलनिधि,
अभी लाँघना है मुझको,
और कितने तूफ़ानों का,
सामना करना है मुझको॥

मेरे जीवन का आस्तित्व,
कब होना साकार है,
इस जीवन के रंगमंच में,
मेरा क्या किरदार है॥

इस जीवन के रंगमंच में,
मेरा क्या किरदार है॥

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