मैं शूर
कहफ़ रहमानी 'विभाकर'मैं शूर
इस वैषम्य-जगत का
अस्त्र-शस्त्र संवेदना।
जब कभी भी संहार होता
अपलक जूझता
कविताएँ रचता हूँ।
आवश्यक नहीं उग्रता
इस समय कोमल-कराल होना
समाधान पाना बुद्धिमत्ता है।
न्याय को स्थान
अन्याय पर संघात
ये हस्त अमिय-विष धार हैं।