कुछ क़दम बढ़ो
गौरव सिंह कुछ क़दम बढ़ो चाँद,तुम क्षितिज तरफ़,
रात है घनी, मुलाक़ात मखमली,
साथ जब तलक हो तुम, ये रात है बड़ी,
कुछ क़दम बढ़ो चाँद, तुम क्षितिज तरफ़।
ये रोशनी तेरी, छल सी अब लगे,
है नरम बड़ी न नैन को चुभे,
मगर ये तेरी चाँदनी, औ' रूप की गमक,
कुरेदती है मिल के दिल के घाव को,
कुछ क़दम बढ़ो चाँद, तुम क्षितिज तरफ़।
सूर्य भी बढ़े कुछ गगन की तरफ़,
नरम पवन चले, सुंदर सुमन खिले,
दिन के दिये जलें, ले दिनकर की लालिमा,
उठ पथिक बढ़े, गंतव्य की तरफ़।
कुछ क़दम बढ़ो चाँद, तुम क्षितिज तरफ़॥