कुबेर : जीवन-संघर्ष की रोचक, रोमांचक व प्रेरक गाथा

01-06-2019

कुबेर : जीवन-संघर्ष की रोचक, रोमांचक व प्रेरक गाथा

गोविन्द सेन 


उपन्यास : कुबेर
लेखिका : डॉ. हंसा दीप
प्रकाशक : शिवना प्रकाशन,
सीहोर-466001 (म.प्र.)
मूल्य : 300 रुपए
समीक्षक : गोविन्द सेन

उपन्यास हो या कहानी उसकी पहली शर्त यह है कि वह पाठक को बाँध ले और अंत तक पढ़ने को मजबूर कर दे, शुरू से ही पाठक में जिज्ञासा जगा दे। उपन्यास के सन्दर्भ यह एक कठिन शर्त साबित होती है। डॉ. हंसा दीप द्वारा रचित उपन्यास इस पहली ही शर्त पर खरा उतरता है। पाठक इसे पढ़ने में कहीं बोझिलता महसूस नहीं करता। 

“कुबेर का ख़ज़ा नहीं है मेरे पास जो हर वक़्त पैसे माँगते रहते हो।” धन्नू को डाँटते हुए उसकी माँ कहती है। उपन्यास इसी कथन से शुरू होता है। इसी डाँट से उपन्यास की शुरुआत होती है। पहले ही पृष्ठ पर बताया गया है कि अपनी माँ की उक्त डाँट खाने वाला वही धन्नू न्यूयॉर्क और लास वेगस का जाना पहचाना चेहरा बन जाता है। पूरा उपन्यास धन्नू के सामाजिक सरोकारों से जुड़ते हुए शून्य से शिखर तक पहुँचने की मार्मिक किन्तु रोचक गाथा है। ख़ूबी यह है कि रोचक बनाने के लिए कोई भी सस्ता हथकंडा नहीं अपनाया गया है।  

प्रेमचंद का कथन है- “मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना उपन्यास का मूल तत्व है।” ‘कुबेर’ का मुख्य चरित्र धन्नू उर्फ़ धंनजय प्रसाद उर्फ़ डीपी उर्फ़ सर डीपी उर्फ़ कुबेर है। जैसे-जैसे उपन्यास आगे बढ़ता है धन्नू का चरित्र उतरोत्तर निखरता जाता है। उसके चरित्र के अनेक पक्ष उद्घाटित होते चले जाते हैं। रहस्यों के परदे एक के बाद एक खुलते चले जाते हैं और धन्नू के कुबेर बनने की प्रक्रिया का ख़ुलासा होता चला जाता है। उपन्यास में एक के बाद एक किरदार दाख़िल होता चला जाता है और उपन्यास स्वाभाविक गति से आगे बढ़ता चला जाता है। विस्तृत फलक का यह उपन्यास 259 पृष्ठों तक फैला है।

धन्नू की कठिन जीवन यात्रा भारत के एक छोटे-से गाँव अग्राल से शुरू होती है। एक नेताजी की वज़ह से उसे अपने सरकारी स्कूल से निकालकर गाँव से दो किलोमीटर दूर सेंट टैरेसा अँग्रेज़ी स्कूल में भर्ती किया जाता है। दो साल तक तो सब कुछ अच्छा चलता है पर जैसे ही नेताजी सत्ता से हटते हैं उसका वहाँ पढ़ना आसान नहीं रह जाता है। एक तरह की त्रासदी हो जाता है। फ़ीस, किताबें, कॉपियाँ सब बंद। उसे गृह कार्य करके नहीं लाने के लिए बहन जी द्वारा छड़ी से तड़-तड़ मारा जाने लगा। वह याद सब कर लेता पर गृह कार्य करने के लिए उसके पास कापियाँ नहीं हैं। माता-पिता इतने ग़रीब हैं कि यदि उसके लिए कॉपी ख़रीदें तो भूखे रहने की नौबत आ जाए। इसलिए वह मार खा लेता है पर कुछ कहता नहीं और एक दिन तंग आकर ग़ुस्से से घर छोड़ देता है। 

गुप्ता जी के ढाबे पर काम करता है। ढाबे पर गुप्ता जी के परिचित और लोक सेवा में लगे एनजीओ ‘जीवन ज्योत’ संस्था के सेवाभावी दादा आते हैं और धन्नू उर्फ़ धनंजय प्रसाद को ‘जीवन ज्योत’ में ले आते हैं। यहाँ अपनी वह पढ़ने की हसरत पूरी करता है और जीवन ज्योत के सेवा कार्यों में ख़ुद को लगा देता है। यहाँ उसे डीपी कहा जाने लगा। धीरे-धीरे दादा का सबसे विश्वसनीय और चहेता हो जाता है। उनके साथ न्यूयॉर्क की यात्रा में दादा के निधन के साथ परिस्थितियाँ उसे वहीं रहने पर विवश करती हैं। कई उतार-चढ़ाव और संकट के समय में भी डीपी ने अपने कर्तव्यों से मुख नहीं मोड़ता। ग्यारह अनाथ बच्चों के लिए पिता की ज़िम्मेदारी निभाता है। वह टैक्सी चलाकर भी अपने एक बेटे धीरम को न्यूयार्क में बुलवाकर इलाज करवाता है व आख़िर उसे बचा लेता है। 

न्यूयॉर्क और लास वेगस शहर का सामाजिक व व्यावसायिक परिवेश भारत से भिन्न है इसलिये यहाँ भारतीय पाठकों के लिये बहुत कुछ नया है। अपनी कड़ी मेहनत और साहस के बूते पर न्यूयार्क से वेगस तक ‘कुबेर’ नाम की कई कम्पनियाँ खड़ी कर देता है। अब वह कुबेर है। उपन्यास के अंत में उसकी थमती साँसों में मानो हर बजती ताली उसके कानों में फुसफुसा रही थी- “यहाँ एक नहीं, कई कुबेर खड़े हैं।”

‘कुबेर’ जीवन-मूल्यों को स्थापना पर बल देने वाला एक प्रेरणादायी उपन्यास है। इस उपन्यास में यह ध्वनित होता है कि पूँजीवादी व्यवस्था तभी सफल होगी जब वह सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ी रहे। मानवतावादी दृष्टिकोण को सर्वोपरि रखना होगा। ‘कुबेर’ में यह भी मिसाल पेश की गई है कि विदेश में रहकर भी देश की सेवा की जा सकती है। सत्य, अहिंसा और प्रेम के गाँधी दर्शन को ‘कुबेर’ में घटित होते देखा जा सकता है।

टोरंटो, कैनेडा में बसी डॉ. हंसा दीप का ‘बंद मुठ्ठी’ के बाद यह दूसरा उपन्यास है जो भूगोल की दृष्टि से भारत से अमेरिका तक और समय की दृष्टि से कई दशकों तक फैला है। सहज-सरल और प्रांजल हिंदी में लिखा यह एक पठनीय उपन्यास है। यह उपन्यास पाश्चात्य और भारतीय जीवन शैली और जीवन-मूल्यों के सकारात्मक एवं नकारात्मक बिन्दुओं को रेखांकित करते हुए दोनों के समन्वय पर बल देता है। दोनों ही स्थानों के जन जीवन के सजीव चित्र यहाँ सहज उपलब्ध हैं। रियल इस्टेट और शेयर बाज़ार की अंदरूनी दुनिया का भी यहाँ यथेष्ठ चित्रण है। कुल मिलाकर ‘कुबेर’ एक ग्रामीण बालक की रोचक, रोमांचक और प्रेरक जीवन गाथा है।

गोविन्द सेन
राधारमण कॉलोनी, मनावर-454446, 
जिला-धार (म.प्र.) मो. 9893010439

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