(कुछ न कुछ टकराएगा ज़रूर) प्रेषक : रेखा सेठी
कितना वक़्त लेगी वह ग़लती जानने में
फिर कितना मानने में?
और और कितना अपने हाथ से अपना ही दूसरा थामने में?