जो ग़म है सीने में दबाये बैठे हैं
अवनीश कुमार गुप्ताजो ग़म है सीने में दबाये बैठे हैं
फ़िर भी होठों पर हँसी सजाये बैठे हैं
पत्थर की ठोकर से गिरकर भी
टकटकी आसमाँ पर लगाये बैठे हैं
और होता भी क्या ऐसी ख़्वाहिशों का
उम्मीद यारी की दुश्मनों से लगाये बैठे हैं
किसी के रूठ जाने का ग़म नहीं उनको
जो ज़माने भर के सताये बैठे हैं