जीवन उम्मीदों का

09-05-2014

जीवन उम्मीदों का

भारती पंडित

जीवन उम्मीदों का प्यारा सा गाँव है
कभी धूप ग़म की है, कभी सुख की छाँव है।

 

खेता जा पतवारें, क्यों माँझी तू हारे
कभी घिरती भँवर में, कभी तीरे नाव है।

 

सोच-समझ चलता जा चालें शतरंज की
कभी शह है हिस्से में, कभी उलट दाँव है।

 

हर डगर हो आसान, ऐसा हुआ है कब
कभी फूल राहों में, कभी शूल पाँव हैं।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें