जलन
रेखा सिंहदीपावली के अवसर पर पूरे घर की साफ़-सफ़ाई चल रही थी। सारे जगह की सफ़ाई हो गई थी लेकिन दो बाथरूम साफ़ करने रह गए थे। फर्शी-बर्तन साफ़ करने वाली कामवाली बाथरूम साफ़ नहीं करती थी। पड़ोसन माया दी बोलीं कि सोसायटी की बाई से पूछ कर देखो। वो अच्छे से साफ़ कर देगी।
सुबह नौ बजे सोसायटी में साफ़-सफ़ाई करने वाली बाई झाड़ू लगा रही थी। मैंने उसे आवाज़ लगाई, "इधर आओ न, तुमसे काम है।"
"क्या काम है मैडम?"
"मेरे घर का बाथरूम साफ़ कर दोगी क्या?"
"कर देती मैडम। लेकिन मेरे कू टेम (टाईम) किधर है। दिन भर इतनी बड़ी सोसायटी में झाड़ू लगाना पड़ता है।"
"मुझे दो-तीन लोगों ने बताया तुम उनका बाथरूम साफ़ करती हो। पैसों की चिन्ता मत कर, मैं दूँगी।"
उसने पूछा, "कितना देंगी?"
मैं बोली, "तीन सौ।"
"आजकल तीन सौ में क्या होता मैडम?" बोलकर वह अपने काम में लग गई। मैं घर के अंदर चली आई। थोड़ी देर में उस बाई ने आकर बेल बजाई।
"अब क्या है?"
"मैडम तेरे को बाथरूम एकदम चकचक माँगता न। चलो पाँच सौ देना। कल दोपहर में मैं घर खाने को नहीं जाती। कल मेरा उपवास है। मैं दोनों बाथरूम साफ़ कर दूँगी। हाँ एसिड और टाइल्स ब्रश मँगवा के रखना।"
मैं बोली ठीक है।
वह दूसरे दिन दोपहर में आई। उसने साड़ी के पल्लू से अपने नाक-मुँह को ढक लिया। फिर एक बाल्टी पानी और मग अपने पास रख लिया। मैंने सोचा कि सामने खड़ी रहने पर ठीक से सफ़ाई करेगी। एक कुर्सी लाकर बाथरूम के सामने बैठ गई।
अरे बाप ये क्या? पूरे बाथरूम में तीखा गंध फैल गया। खड़-खड़ तेज़ आवाज़ झाड़ू की आने लगी। पूरा बाथरूम धुँआ-धुँआ हो गया।
"क्या कर रही हो?"
"एसिड डाला मैडम," बोलकर ऊई माँ. . . देवा-देवा करने लगी।
"क्या हुआ?"
"मैडम! पैर में जलन हो रही है।"
"चप्पल पहन कर काम करना था न?"
"मेरा चप्पल इतना गंदा है, घर के भीतर कैसे लाती।"
मैं बोली, "मेरी चप्पल पहन लेती।"
मुझे भीतर से अपराध बोध हो रहा था। अपने सुख के लिए बेचारी को तकलीफ़ में डाल दिया।
"टेंसन नहीं लेने को मैडम। मेरा तो काम ही यही है। माँ-बाप पढ़ाया नहीं। क्या करने का? शादी करके भी सुख नहीं। पाँच बच्चे हैं, आदमी कभी काम पर जाता है, कभी नहीं।" वह बोलते जा रही थी और जल्दी-जल्दी सफ़ाई करते जा रही थी। एसिड का छींटा पड़ते झट से बाल्टी का पानी हाथ-पैर पर डाल देती।
एक-डेढ़ घंटे में तीनों बाथरूम के टाइल्स, दरवाज़े, नल, फ़र्श एकदम साफ़ कर दिए। हाथ -मुँह अच्छे धो। साड़ी के कोने से पोंछते हुये बोली- "मैडम देख लो। काम ठीक हुआ न?"
मैं बोली, "बहुत अच्छा हुआ है इसलिये तो मैं तुमको ही बोली।" और पाँच सौ का नोट उसे थमा दिया।
वह बहुत ख़ुश हुई।
"मैडम मेरा लड़का कब से पटाखे खरीदने को बोल रहा था। इस पैसे से कल पटाखे लाऊँगी." कह कर वह चली गई।
मैं सोच रही थी यह कैसी जलन है!