जब भी बोल
विमला भंडारीअरे! कुछ तो बोल
जब भी बोल
जनहित में बोल
किसानों की बोल
मजदूरों की बोल
अबलाओं की बोल
कृशकायों की बोल
भूखे-नंगों की बोल
जब भी बोल
जनहित में बोल
लूटतों को बचा
गिरतों को उठा
काम आगे बढ़ा
पूरी कर राज की मंशा
कर अभागों की अनुशंसा
जब भी बोल
जनहित में बोल
देखना एक दिन
न पद होगा
न होगा राज
मन की मन में रह गई
तो कब करेगा काज
जब भी बोल
जनहित में बोल