"भैया! पैसे दो ना!" वैभव ने कहा 

सौरभ ने कहा, "नहीं, फिर तू जाकर इमली खाएगा।"

"नहीं भैया पाचक खाऊँगा या चॉकलेट," वैभव ने उत्तर दिया।

सौरभ ने वैभव को दो रुपए दिये। सौरभ अभी पहली कक्षा में था तो वैभव के.जी. में पढ़ रहा था। कुछ दिन पहले ही उनकी मम्मी ने आकर गुमटी लगाकर बिस्कुट, चॉकलेट बेचने वाले लड़के को समझाया था कि वह वैभव को इमली ना खाने दे। पर वैभव से इमली खाये बिना रहा नहीं जाता था।

वैभव था शरारती और चालाक भी। उसने अपने एक सहपाठी को एक रुपए दिया और इमली लाने को कहा। एक रुपये में सोलह इमलियाँ मिलती थीं। स्कूल में कक्षाओं के दौरान उसने आठ इमलियाँ खा लीं। 

अहा! कितना आनंद आता है। अब छुट्टी का वक़्त हो रहा था। वैभव और सौरभ पैदल घर की ओर निकले। शरारती वैभव ने कुत्ते के बच्चे को बोतल दे मारी। कुत्ते का बच्चा भड़क गया और उसपर भौंक कर दौड़ने लगा। तभी वैभव ने दो इमालियाँ एक साथ खा ली और इमली जा फँसी वैभव के कंठ में। वैभव दर्द से कराह उठा तब सौरभ का ध्यान उसकी तरफ़ आया। वह समझ चुका था कि माजरा क्या है। उसने उसे खाँस कर इमली बाहर निकलने को कहा पर इमलियाँ बाहर निकलती ही नहीं थी।

अब क्या किया जाए. . . सौरभ यह सोच ही रहा था कि एक बड़ी कक्षा का छात्र साइकिल से उनके पास से गुज़रा। सौरभ ने उससे मदद माँगी। उस छात्र ने वैभव को पीछे से पकड़ा और छाती पर ज़ोर लगाते हुए धक्का दिया। इसके बाद इमलियाँ उसके मुँह से निकल कर बाहर सड़क पर गिर गईं। 

अब वैभव के जान में जान आई और सौरभ के भी। सौरभ ने गौरव को डाँटा। गौरव ने रुआँसा होकर जेब मे पड़ी इमली को ज़मीन पर फेंक दिया। सौरभ ने उसे समझाते हुए घर पर मम्मी से इस बात का ज़िक्र करने से मना किया।

 अब जब सौरभ और वैभव घर पहुँचे थे माँ ने दरवाज़ा खोला पर दोनों ने माँ से कुछ नहीं कहा। माँ ने वैवभ को देखकर कहा, "आज तुम्हारे पसंद की इमली की चटनी बनाई है।"

सौरभ और वैभव एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें