हम उठे तो जग उठा
चंपालाल चौरड़िया 'अश्क'हम उठे तो जग उठा,
सो गए तो रात है,
लगता अपने हाथ में,
आज क़ायनात है
हँस पड़े तो ग़ुल खिले,
रो पड़े तो बरसात है,
सारा जहाँ अपने साथ,
खूब ये जज़्बात है
एक से अनोखे एक,
खूब वाक़यात हैं
इश्क की भी ये अजब,
मिल रही सौगात है