हुए दिन बरस-बरस के
डॉ. आराधना श्रीवास्तवातुम क्या गये कि फीके हो गये
जीवन के सब रंग
नयन जल भर-भर आये।
पल-पल करके दिन बीता
फिर इक-इक दिन कर साल हुआ
तुम बिन भी यूँ जीना पड़ेगा
हमने कभी सोचा ही न था
व्यथित हृदय के तार
बिखर गये टूट-टूट के।
तेरी आँखों के ये तारे
तुम बिन लगते हैं बेचारे
पल भर में ही बड़े हो गये
करते नहीं हैं ज़िद की बातें
भूल गयें तकरार
हैं रोते बिलख-बिलख के।
सूने घर और सूने आँगन
सूने जीवन के हर इक पल
लगता है कुछ काम ही नहीं
इक दूजे को तकते हैं हम
तुम-बिन सब बेकार
हुए दिन बरस-बरस के॥