हर युद्ध तू स्वीकार कर - 1
ज्योति मिश्राहुंकार भर, न चीत्कार कर,
हर घाव का, प्रतिकार कर,
ये जग तो है, निर्मम बड़ा,
तू शत्रु का संहार कर॥
संशय न कर, न संताप कर,
स्वयं को तू स्वीकार कर,
ये जग तेरा अधिकार है,
स्वप्नों को तू साकार कर॥
न शोक कर, न विलाप कर,
जो गुज़र गया उस काल पर,
अस्तित्व तेरा है अनंत,
न सूक्ष्म कर, उसे मार कर॥
साहस की गठरी बाँधकर,
बढ़ चल, न तू इनकार कर,
तू शिव भी है, तू चंडिका,
रुकना कभी न हार कर॥
आघात पर, प्रतिघात कर,
तू मात्र न संवाद कर,
शब्दों की भाषा न समझते,
उनसे तू संग्राम कर॥
आ सामने ललकार भर,
न छुप के तू कभी वार कर,
अपनी स्वतंत्रता के लिए,
हर युद्ध तू स्वीकार कर॥
हर युद्ध तू स्वीकार कर॥