हक़

आशुतोष कुमार (अंक: 148, जनवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

"यह जगह मेरी है इधर मैं ही सोऊँगा," पहला शेर गुर्राया।

"नहीं यह जगह मेरी है इधर मैं सोऊँगा," दूसरे शेर ने भी ज़ोरदार दहाड़ लगाई।

वहाँ पास से गुज़र रहे बूढ़े बंदर ने उन दोनों को देखा और फिर फटकारा कि, "यह क्या सुबह-सुबह इंसानों की तरह ज़मीन को लेकर लड़-झगड़ रहे हो!"

दोनो शेर अपनी इस इंसानी हरकत पर शर्मिंदा होकर अपनी गर्दन झुकाए अलग-अलग सो गए।
 

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