बहुत साल पहले की बात है, खाड़ी देशों में गुलिस्तां नामक देश पर मोहम्मद यासीर का शासन चलता था। मोहम्मद यासीर बहुत ही क्रूर और ज़ालिम शासक था। उसके पास कई ग़ुलाम हुआ करते थे। वह ग़ुलामों के प्रति सख़्ती से पेश आता था। ज़रा सी भूल-चूक हो जाय तो उनका सर क़लम करावा देता था। वह ग़ुलामों को कुछ नहीं समझता था। उसकी नज़र में ग़ुलाम एक निर्जीव वस्तु मात्र थी।

यासीर के महल में एक हज़ार से भी ज्यादा ग़ुलाम सेवा में मौजूद रहते थे। खास उसकी सेवा में करीब सौ ग़ुलाम मौजूद रहते थे। अब्दुल वहीद नाम का ग़ुलाम उन सौ ग़ुलामों में था जो यासीर के बहुत करीब था। वहीद नेक और शरीफ़ था। उसकी ईमानदारी का जवाब नहीं और अक्लमंद भी था। वो यासीर के गुस्से से भली-भाँती परिचित था और उसके क्रूरता भरे कारनामों को सुन चुका था। इसलिये वह हमेशा सावधानी बरतता था। यासीर के सेवा जतन में किसी प्रकार की कमी नहीं होने देता था। वहीद की सेवा देख कर यासीर उस पर फ़िदा हो गया। वहीद की छोटी-मोटी सेवा से भी अब यासीर खुश होने लगा था।

यासीर जब महल से बाहर जाता था तो वहीद को साथ ले जाता था। और महल में रहता था तो वहीद को अपने पास ही रखता था। उसे लगने लगा था कि वहीद जैसा सेवक उसे दुनिया में और कहीं नहीं मिलेगा। इसी तरह दिन गुज़रने लगे। यासीर वैसा का वैसा ही क्रूर और ज़ालिम रहा। ग़ुलामों के प्रति उसके मन मे दया नहीं आयी।

बेगिस्तां नामक देश, गुलिस्तां का पड़ोसी देश हुआ करता था। दोनों देशों के बीच मधुर संबंध थे। परन्तु समय के साथ-साथ मधुरता, कड़वाहट में बदलने लगी। बेगिस्तां का शासक आमिर, यासीर को मरवाकर तख़्त और ताज हासिल कर गुलिस्तां पर शासन करना चाहता था। इसकी भनक अब्दुल वहीद को लगी। वहीद अगर यासीर को सूचित करता है तो इसके दो परिणाम हो सकते थे। पहला, यासीर को वहीद की बात पर यक़ीन हो गया तो वह सम्हल जायेगा और वहीद को ईनाम देगा। यदि वहीद की बात पर यक़ीन ना आया तो उसका सर क़लम करवा देगा। उस सूरत में वहीद ने ख़ामोश रहना ही उचित समझा। ख़ामोश रह कर महल के भीतर होने गतिविधियों पर नज़र रखने लगा।

धन के लोभ मे आकर यासीर के कुछ वफ़ादार भी बेगिस्तां के बादशाह आमिर का साथ देने लगे। यासीर को इसकी भनक तक नहीं मिली। यासीर निश्चिंत रोज़-मर्रा के कामों में उलझा रहता था। आखिरकार यासीर के वफादारों ने गुलिस्तां महल के गुप्त मार्गों की जानकारी आमिर को दे दी। आमिर भी यही चाहता था। जैसे उसे गुप्त मार्ग और गुप्त दरवाज़ों के बारे में पता चला तो उसने अपने विश्वास पात्र सैनिकों के साथ मिलकर यासीर की हत्या का षडयंत्र रचा।

एक दिन प्रातः काल के समय यासीर के वफ़ादारों ने आकर कहा कि गुप्त मार्गों और दरवाज़ों की जांच पड़ताल किये कई दिन हो गये हैं। क्यों न आज चल कर मुवायना करें। यासीर को ठीक लगा और कुछ सैनिकों के साथ गुप्त मार्ग की ओर चल पड़ा। उसके साथ वहीद भी था।

आमिर के षडयंत्र के अनुसार गुप्त मार्ग से उसके सैनिक प्रवेश करेगें और यासीर पर धावा बोलेगें। अचानक आक्रमण होने से यासीर सम्हल नहीं पायेगा और मारा जायेगा। आमिर की योजना अनुसार उसके सैनिकों ने गुप्त मार्ग से प्रवेश किया और यासीर पर टूट पड़े। इस तरह अचानक आक्रमण से यासीर पहले तो घबरा गया। लेकिन पल भर में सम्हल गया और उन पर टूट पड़ा। यासीर तलवार का धनी था। अच्छे-अच्छे योद्धाओं को धूल चटाई थी। आसानी के काबू में नहीं आने वाला था। घमासान मुकाबला शुरू हो गया। आमिर के सैनिकों ने यासीर के सैनिकों का वध करना प्रारम्भ किया। वे एक के बाद एक  वीरगति को प्राप्त होने लगे। आमिर की योजना अनुसार, यासीर के सारे अंगरक्षक मारे जाने के बाद  आसानी से अकेले यासीर का वध किया जा सकता है। थोड़ी ही देर में यासीर के सारे सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गये। उन्होंने चारों ओर से घेर कर यासीर पर हमला बोल दिया। वहीद मौका देख कर यासीर पर होने वाले प्राण घातक प्रहारों को अपने शरीर पर लेने लगा। इस तरह वह अपने प्राणों को ख़तरे में डाल कर यासीर को जीवन दान दे रहा था। यासीर को लगा की आज ये ग़ुलाम नहीं होता तो वह निश्चित ही मर जाता। इसी तरह काफी देर तक संघर्ष चलता रहा।

गुप्त मार्ग से शत्रुओं का आना और बादशाह मोहम्मद यासीर पर धावा बोलना; ये खबर गुलिस्तां के सेनापति को मिली। वे सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी लेकर गुप्त द्वार पहुँच गये। सैनिकों की इतनी बड़ी टुकड़ी को देख कर आमिर के सैनिकों का मनोबल टूट गया और भागने लगे। परन्तु सेनापति ने उनमें से कुछ को वहीं मौत के घाट उतार दिया और कुछ को बंदी बना लिया। यासीर का बाल भी बांका नहीं हुआ। परन्तु वहीद, यासीर की रक्षा करते-करते अपने शरीर पर जो प्राण घातक घाव  ले चुका था, उसमें अब खड़े रहने की शक्ति तक नहीं बची। वह ज़मीन पर गिर पड़ा तथा बेहोश हो गया।

यासीर ने फौरन हुक्म दिया कि वहीद का उपचार राजवैद्य से करवायें। वहीद को शीघ्र राज वैद्य के पास ले जाया गया। कुछ समय बाद स्थिति सामान्य हो गयी। यासीर ने राजवैद्य के पास जाकर वहीद का हाल-चाल मालूम किया। राज वैद्य ने कहा कि कुछ ही पलों में वहीद को होश आ जायेगा पर हालत नाजुक है। सुनकर यासीर गम्भीर हुआ। फिर राज वैद्य ने कहा कि वहीद का बचना नामुकिन है। ग़ुलाम की वफादारी देख कर यासीर अवाक रह गया। वहीद अब नहीं बचेगा यह जान कर बहुत दुखी हुआ।

कुछ देर बात ग़ुलाम अब्दुल वहीद ने दम तोड़ा। उस समय यासीर उसके पास था। जब वह अंतिम साँसे ले रहा था तब यासीर ने उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी थी, और कहा कि ये गुलिस्तां बादशाह मोहम्मद यासीर पूरी करेगा। वहीद ने उसकी अंतिम इच्छा बताई कि आज के बाद कोई भी ग़ुलाम न रहे। सारे ग़ुलामों को आज़ाद कर दिया जाय।

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