घोंसले
उमेश चरपेउस पेड़ की
टहनी पर
लटकते
उदास घोंसले
इसी उम्मीद में कि-
बरसों से गये पक्षी
एक दिन
बसंत की तरह लोैट आयेंगे
पेड़ दिलासा देता रहा
बाँधता रहा ढाढ़स
माँगते रहा दुआ
ईश्वर से
एक दिन जब
लौटे तो देखा
दूर-दूर तक
पसरी थी इमारतें ही इमारतें
यह देख पक्षी
सिसक-सिसक कर रोने लगे
ढूँढ़ने लगे
उस पेड़ को
उस टहनी को
और उन घोंसलों को ......
कहते हैं
उस रात साज़िश हुई थी,
शहर से
कुछ लुटेरे आये थे
गाँव में।