गेहूँ
डॉ. कैलाश वाजपेयीओ मेरे जन्मदाता
मैं हरा गेहूँ
दूध भरा
मेरी यह विनती है
जब मैं थक जाऊँ
और बने रोटी यह मेरी काया
मैं किसी शराबी
अघाये अय्याश की
आँत में न जाऊँ
किसी फटेहाल थके
पेट की जलती भट्टी में
स्वाहा होता हुआ
तृप्ति की धुन गुनगुनाऊँ
वही मोक्ष सही
मोक्ष होगा
मेरे सुनहरे विकास का।