फ़ुर्सत के पल
अनिल खन्नादो घड़ी फ़ुर्सत से
बात करें हम
गुज़रे हुए वो लम्हें
याद करें हम।
जब
घंटों बात करते
नहीं थकते थे
हाथों मे हाथ लिए
बेफ़िक्र सड़कों पे
निकल पड़ते थे।
लपक कर
आसमान छू लेते थे।
चाँदनी के झूले मे बैठ
सितारों से गुफ़्तगू करते थे।
जब
हम वक़्त के नहीं
वक़्त हमारे पीछे
भागता था
हम सूरज का नहीं
सूरज हमारे जगने का
इंतज़ार करता था।
कहाँ से कहाँ
आ गए हम
वक़्त के इशारों पे नाचती
कठपुतलियाँ बन गए हम
यह हक़ीक़त है
सिर्फ़ कहने की
बात नहीं
अब तो हमारे पास
वक़्त निकालने के लिए भी
वक़्त नहीं।
ज़िंदगी की कशमकश में बिखर गए सपने सारे
फ़ुर्सत के कुछ पल भी
अब नहीं रहे हमारे।