दिखता न हो जब किनारा कोई

09-05-2014

दिखता न हो जब किनारा कोई

भारती पंडित

दिखता न हो जब किनारा कोई,
मिलता न हो जब सहारा कोई
जला ले दीया खुद ही की रोशनी का,
कोई तुझसे बढ़कर सितारा नहीं।


तूफ़ां तो आए है आते रहेंगे,
ग़मों के अँधेरे भी छाते रहेंगे,
आगाज कर रोशनी का कि तुझको,
अँधेरों की महफ़ि़ल गवारा नहीं।


माना कि ये इतना आसां नहीं है,
मगर सम्हले गिर के जो इन्सां वहीं है,
तारीके शब में उम्मीदों का परचम,
कहीं इससे बेहतर नज़ारा नहीं।

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