ध्यान

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (अंक: 148, जनवरी द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

पिछले कुछ दिनों से शालिनी की तबियत ख़राब चल रही थी। तब भी वह सुबह पाँच बजे उठकर दोनों बेटों व बेटी के स्कूल के लिए टिफ़िन बनाती, बच्चों को नाश्ता देती व बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजती। बच्चे भी अभी छोटे ही थे ख़ुद से तैयार भी नहीं हो सकते थे। बच्चों के जाने के बाद ज्यों ही बैठती त्यों ही पति आलोक उठ जाते; उनके लिए चाय नाश्ता व टिफ़िन तैयार करती। बीमार होने पर भी लगातार काम करने से उसकी हालत और ख़राब हो गई। आलोक से दो तीन डॉक्टर को दिखाने के लिए कह चुकी थी पर आलोक ध्यान ही नहीं दे रहा था, कहता तुम लोग जब देखो बस तबियत ख़राब है। 

रविवार के दिन सुबह शालिनी उठी लगा गिर ही पड़ेगी सिर भी बहुत तेज़ दर्द होने लगा। छुट्टी होने के कारण बच्चे व आलोक अभी सो ही रहे थे। ब्रश कर एक बिस्किट खाया तुरंत ही उल्टी होने लगी। पति आलोक को जगाया तो बोले अभी ठीक हो जाएगा। लेकिन पाँच मिनट बाद फिर उल्टी शुरू। अब तो लगातार रुक-रुक कर उल्टी होने लगी। शालिनी तो अब उठने चलने में भी दिक्क़त होने लगी। इतने में बेटा अमर उठ गया था उसने पापा को जगाया। आलोक ने उल्टी की दवा दी पर फिर भी उल्टी नहीं रुकी। तब तक दसियों बार उल्टी हो चुकी थी। आलोक भी घबड़ा गया। ख़ैर जल्दी से तैयार हो कर शालिनी से कहो चलो डॉक्टर के यहाँ चलते हैं। हालाँकि शालिनी कई दिनों से डॉक्टर को दिखाने को कह रही थी पर आलोक ने उस पर ग़ौर नहीं किया था। किसी तरह शालिनी कपड़े बदलकर किचेन में गई, कई बार उठ कर व बैठ कर आलोक के लिए चाय व दलिया बनाया। सोचा आलोक ने चाय भी नहीं पी है व डॉक्टर के यहाँ पता नहीं कितनी देर लगेगी। बेटे से चाय व दलिया भिजवाया। जिसे देखते ही आलोक लज्जित हो गया। मन में सोचने लगा कि मैंने तो शालिनी का ध्यान नहीं दिया जब कि कई दिनों से तबियत ख़राब होने की बात बता रही थी। एक शालिनी है जो कि खड़ी भी नहीं हो पा रही है फिर भी मेरा कितना ध्यान रखती है मुझे चाय व दलिया बना कर दिया। आलोक चाय पीकर व दलिया खाकर शालिनी को डॉक्टर के यहाँ ले तो जा रहा था पर उसकी शालिनी से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। 

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