चुग रही थी वह
दानें
बड़े धैर्य
बड़ी मेहनत से
अपने अंडे-बच्चों के लिए,
कोंपलें फूट रहीं थीं
उन दानों से
झाँक रहा था
उनका आज
और कल,
एक-एक दानें के साथ
जमा कर रही थी वह
एक-एक साँस,
उड़ चली समेट
अपने दानें
अपनी मेहनत,
कई सपने
आँखों में लिए,
अंडों की याद
उसके परों की गति 
दुगुनी कर जातीं
और भी गहरा जाती लाली
उसके आँखों की,
अनुभव था
सब रस्ते मालूम थे उसे
पर मालूम न चल सका था
कि घात लगाए
ताक पर हैं उसके
कई पेशेवर बहेलिये,
जो ले लेना चाहते हैं
उसके दानें
उसकी मेहनत
उसका सर्वस्व,
चौंक पड़ी
पहुँचते ही क़रीब
देख जाने-पहचाने चेहरों को,
चाह कर भी बच न पायी
फाँस ली गयी
चारों तरफ़ से 
जादुई जाल में,
दानें माँगे गए
'ना' कहने पर
धर दिया गया धारदार चाक़ू
उसकी गर्दन पर,
पर एक भी दाना
निकल न सका उसकी गाल से
छीना-छोरी में
निकल गयी नन्ही-सी जान
उसके नन्हे-से शरीर से,
बिखर गए उसके पर
उसके सपने
उसके हौसले,
इंतज़ार में है उसके आज भी
वो बरगद का मस्तमौला पेड़
और
उसके घोंसले का तिनका-तिनका,
उसके अंडे
अब उड़ने लगे हैं
नए सपनों-उमंगों के
आकाश में
उसकी ही तरह
जैसे कभी उड़ी थी वह,
ये भी जाने लगे हैं
दानें चुगने,
ये नादान हैं
अनजान हैं
दुनियादारी से
जैसे वह थी,
इन्हें भय नहीं है किसी का 
पर मुझे भय लगता है
पीढ़ियों की पीढियाँ
निपटती जा रही हैं,
और कोई चढ़ता जा रहा है
सीढ़ियाँ-दर-सीढ़ियाँ
दानों की ढेरों की ढेर
की चोटी की चोटी पर,
सहम जाता हूँ
सोच इसके मुक़ाम को।

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