चित्रकार

01-08-2019

चित्रकार

राहत कैरानवी 

( 1 )

हाँ, मुझे अब चित्रकार बनना है 
और बनाना है पहला चित्र 
एक ख़ूबसूरत औरत का 
जिसके माँग में सिन्दूर हो 
माथे पर हो नगदार बिंदी 
गले में हो चमचमाता लम्बा-सा मंगल-सूत्र 
खड़ी हो जो दर पर 
जिसका एक हाथ रूहअफ़ज़ा का जग लिए हो 
दूसरा हाथ सलामों में व्यस्त हो 
भरी गर्मी में उन प्यारे मुसाफ़िर रोज़ेदारों के लिए 
रुक जाते हैं जो किसी उम्मीद से उस दर पर 
बेझिझक, निडर होकर अफ़्तार के वक़्त 
जो जानते भी न हों गंगा-जमुनी जैसी चीज़ को 
मगर जी रहे हों उसी तहज़ीब को 

( 2 )

हाँ, मुझे चित्रकार बनना है 
और बनाना है दूसरा दुर्लभ चित्र
ख़ूबसूरत मर्द का 
साँवले, चौड़े चेहरे पर जिसके ख़शख़शी दाढ़ी हो 
कुर्ते-पजामे का सफ़ेद लिबास मुर्दों का-सा हो 
जो भरी रात में अकेली लड़की देख तड़प जाए 
जानबूझकर उसी सड़क आए 
बन जाए उसका बाप या भाई 
जो बचा लाए उसे सड़क के लफंगों से 
सुरक्षित घर पहुँचाकर देश कि भी जान बचाए 
तरह-तरह के दंगों से।

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