बिना बताए

दिविक रमेश

राजू को मास्टर जी ने शेख चिल्ली कहा तो उसे समझ ही नहीं आया कि उसे शेख चिल्ली क्यों कहा गया। घर पहुँचा तो बस्ता एक ओर रख कर माँ से पूछा, ’माँ शेख चिल्ली क्या होता है?‘

’बताऊँगी। जरा मुँह धोकर पहले कुछ खा-पी तो ले।‘

पर राजू को कहाँ सब्र। जिद्द करके बोला, ’नहीं, माँ अभी बताओ। पहले।‘

’अच्छा तो सुनो।‘

’एक गाँव में एक आदमी रहता था। नाम था बलवन्तू। जब देखो तब वह सोचता ही रहता था। जैसे बहुत बड़ा चिन्तक हो। काम धाम कुछ करता नहीं था। घर वाले इसलिए परेशान भी रहते। पर क्या करते। समझा ही सकते थे।

एक दिन पिता ने कहा, ’बलवन्तू देख मैं अब बूढ़ा हो चला हूँ। कब तक पिता के सहारे रहेगा। कुछ करता-धरता क्यों नहीं। कहो तो जमींदार से कह कर कुछ काम दिला दूँ।’

“बापू! तुम्हारा बलवन्तू ऐसा वैसा नहीं है। एक पंडित ने बताया है कि मेरे हाथ की लकीरों में राजयोग लिखा है। देखना आपका बलवन्तू एक दिन क्या रंग लाता है। मेरे पास एक योजना है”

पिता चुप हो गए।

’पूछोगे नहीं। क्या योजना है?‘ - बलवन्तू ने पिता को चुप देख कर कहा।

पिता तब भी चुप रहे। तब बलवन्तू अपने आप ही बताने लगा।‘

राजू को माँ की इस बात में कहानी का मजा आने लगा था, सो और भी ध्यान से सुनने लगा था। माँ ने बात आगे बढ़ाई।

’तो बलवन्तू ने बताया -

मैंने सोचा है कि मैं दो चार दिन में राजकुमारों जैसे कपड़े पहन कर जंगल में चला जाऊँगा वहाँ जाकर सबसे पहले एक घोड़ा ढूँढूँगा उसे जल्दी ही साध कर अपना घोड़ा बना लूँगा।

तब वहाँ एक शेर आएगा मैं शेर को उसकी आँखों में अपनी आँखें डालकर देखूँगा। शेर समझ जाएगा कि मैं डरपोक नहीं हूँ। वह डर जाएगा और दुम दबा कर भाग जाएगा। आस पास के जानवरों पर इसका अच्छा असर पड़ेगा। उन्हें थोड़ा प्यार करूँगा तो वे मुझे रोबिनहुड का अवतार समझ कर मेरा कहना मानने लगेंगे।

तब बन्दर मेरे लिए फल लाएँगे और हाथी मेरे नहाने के लिए पानी। रीछ नाच दिखाकर मेरा मनोरंजन करेंगे।

खरगोश और चील को मैं एक खास काम सौंपूँगा। वे जंगल के किनारों पर निगाह रखेंगे, जहाँ से जंगल में भटकने के लिए एक दिन राजकुमारी जरूर आएगी। अपनी भौंदू सी सखी के साथ। उन्हें मुझे सूचित जो करना है।

बलवन्तू के पिता ने देखा कि वह जैसे कहीं खो गया था। पर चुपचाप सुनते ही रहे। बलवन्तू बोलता ही जा रहा था --

और समझ लीजिए कि वह एक दिन आ भी गया। राजकुमारी का रथ जंगल के भीतर घुसता चला गया।  सखी रोकती रही लेकिन राजकुमारी को नहीं मानना था, सो नहीं मानी। मुझे तो इन्तजार था उसके भटकने का। राजकुमारी थी सो उसे भटकना तो होता ही है, आखिर वह भटक ही गई। अब मजा आया। अब मेरे कहने पर एक शेर उसे डरा रहा है। राजकुमारियाँ ऐसे में जरूर डरती हैं, सो वह भी डर रही है। उसकी सखी को भी कुछ नहीं समझ आ रहा। वे दोनों घबरा रही हैं। अब मैं उसके सामने हूँ। ऐसे जैसे एक राजकुमार को होना चाहिए। अब मैं पूछ रहा हूँ - ’आप कौन हैं। इतने अंधेरे जंगल में क्या कर रही हैं। मैं देख रहा हूँ कि वे डर रही हैं। मैं बताता हूँ, मैं एक राजकुमार हूँ। जंगलों से मुझे बहुत प्यार है। इसीलिए कभी-कभी महलों की घुटन से बचने के लिए जंगलों की खुली हवा में आ जाता हूँ। जंगल मेरे दोस्त हैं। डरो नहीं मैं हूँ न। आप भी राजकुमारी प्रतीत होती हैं?।‘

’जी! मैं राजकुमारी ही हूँ। अनन्तपुर राज्य की। भटक गई हूँ। हमारी मदद कीजिए। पहले तो इस शेर से मुझे बचाओ।

मैं शेर की ओर देखत ूँ। इशारा समझ कर शेर वहाँ से चला जाता है।

राजकुमारी खुश है।

राजकुमारी मेरे साथ ही घोड़े पर बैठ जाती है। रथ पर उसकी सखी है। मैं उन्हें जंगल के बाहर ले आता हूँ।

बलवन्तू के पिता देख रहे थे कि बलवन्तू खुद पर खुद बोलता जा रहा था। उसे तो शायद ध्यान भी न था कि उसके पिता उसके पास बैठे हैं।

’राजकुमारी धन्यवाद देती हैं। घोड़े से उतर कर वह रथ में बैठ जाती है। जाने को तैयार होती है कि राजा अपने सैनिकों के साथ उसे ढूँढता हुआ वहाँ पहुँच जाता है। राजकुमारी राजा को सारी बात बताती है। राजा खुश होता है। वह मेरी ओर देख रहा है। मुझे मालूम है। राजा मन ही मन चाह रहा है कि मुझे अपना दामाद बना ले। राजकुमारी भी तो ऐसा ही चाह रही है।

राजा ने राजकुमारी का हाथ मेरे हाथ में दे दिया है। मुझे अपनी जगह राजा भी बना दिया है।

ओह! कितना मजा आ रहा है।

मैं राजा हूँ। राजकुमारी मेरी रानी है।

मैं राजा हूँ। राजकुमारी मेरी रानी है। मेरे महल देखो। मेरे वस्त्र देखो।

बलवन्तू बोलता जा रहा था। पिता से अब न रहा गया। उसे झटका और कहा, ’अरे शेख चिल्ली अब जमीन पर लौट आ। कुछ काम धाम करने की सोच। ख्याली पुलाव खाना छोड़, कुछ मेहनत करना सीख।

बलवन्तू को जैसे होश आ गया। देखा उसके बदन पर वही कुर्ता-पाजामा थे और वह वही का वही बलवन्तू था।‘

माँ के बिना बताए राजू समझ गया था कि शेख चिल्ली क्या होता है। और यह भी कि मास्टर जी ने उसे शेख चिल्ली क्यों कहा था।

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