भाषा विमर्श शृंखला - 003 'भारत में व्याप्त भाषा भ्रम' पर वेबिनार संपन्न

01-07-2020

भाषा विमर्श शृंखला - 003 'भारत में व्याप्त भाषा भ्रम' पर वेबिनार संपन्न

डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)


वैश्विक हिन्दी परिवार
भाषा विमर्श - 03

'भारत में व्याप्त भाषा भ्रम' पर वेबिनार संपन्न

हैदराबाद –

भारत बहुभाषिक एवं बहुसांस्कृतिक देश है। और अकसर यह कहा जाता है कि इस अनेकता में एकता विद्यमान है। लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि भाषिक विविधता के कारण अनेक समस्याएँ पैदा होती हैं। अब तो स्थिति यह है कि भाषा के नाम पर देश बँट रहा है। वस्तुतः हम सब अनेक तरह के भ्रम पालते रहते हैं। कई प्रकार की भ्रांतियों का शिकार होते रहते हैं। लेकिन हमें इसका बोध ही नहीं होता कि हम उलझे हुए हैं।

इन सब विषयों पर प्रकाश डालने हेतु वैश्विक हिंदी परिवार ने 'भारत में व्याप्त भाषा भ्रम' विषयक वेबिनार का आयोजन किया था। बतौर मुख्य वक्ता प्रसिद्ध भाषाविद राहुल देव ने कहा कि भाषिक विविधता एक समस्या है। भारत ही नहीं बल्कि लगभग सभी देशों में इस भाषायी विविधता को देखा जा सकता है। इस विविधता के कारण ही भाषा नियोजन (लैंग्वेज प्लानिंग) सामने आई।

उनका मानना है कि प्रमुख रूप से दो प्रकार के भाषा भ्रम विद्यमान हैं। एक सार्वभौमिक भ्रम है। अर्थात लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि भाषा मात्र संवाद या संप्रेषण का माध्यम है। लेकिन यह भाषा की एक भूमिका मात्र है। दूसरा है सामान्य भ्रम। जिसे भ्रांतियाँ कहा जा सकता है। कुछ लोग हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा मानते हैं। लेकिन हिंदी भारत संघ की राजभाषा है।

आम तौर पर यह भ्रम है कि सारे भारतीय हिंदी समझते हैं और बोलते हैं अतः हिंदी समस्त भारत की भाषा है। राहुल देव ने आंकड़ों के साथ इस बात को स्पष्ट किया कि ऐसा नहीं है, यह केवल एक भ्रम है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जिस औपचारिक खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग हम सब करते हैं वस्तुतः किसी की मातृभाषा नहीं है। क्योंकि हिंदी के संदर्भ में भोजपुरी, मैथली, बुंदेली, ब्रज आदि प्रथम भाषाएँ या मातृबोलियाँ हैं।

राहुल देव इस बात पर बल देते हैं कि भाषा की शक्ति उसके प्रयोग में निहित है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि भारतीय लोगों ने इस भ्रम को आत्मसात कर लिया है कि अंग्रेजी ही आधुनिक भारत के निर्माण और उद्धार की भाषा है। उन्होंने टोव स्कटनब और केंगेस की कृति 'लिंग्विस्टिक जीनोसाइड इन एजुकेशन' के हवाले से यह कहा कि इस भ्रम के कारण अन्य भाषाओं के लिए घातक स्थिति पैदा हुई है।

उन्होंने यह सुझाया कि सभी भ्रमों को दूर करने के लिए हमें एक ऐसी व्यवस्था चाहिए जो भारतीय भाषाओं से उभरने वाली प्रतिभा को अवसर प्रदान करे। इस हेतु हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच भाषा पुल का निर्माण करना ही होगा।

इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के सहयोगी हैं अक्षरम (भारत), हिंदी भवन (भोपाल), निर्बाध (भारत), वातायन (यू.के.), हिंदी राइटर्स गिल्ड (कनाडा), झिलमिल (अमेरिका), विश्वंभरा (हैदराबाद और अमेरिका), सिंगापुर संगम, कविताई (सिंगापुर) और विश्व हिंदी सचिवालय।

कार्यक्रम की शुरूआत में जवाहर कर्नाट ने सभी का स्वागत किया। अंत में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष और 'अक्षरम' के अध्यक्ष अनिल जोशी ने कार्यक्रम का समाहार प्रस्तुत किया तथा पद्मेश गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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