अनचाही
निवेदिता शर्मामैं जनमना चाहती हूँ पर
मार डाली जाती हूँ
या नहीं जनमना चाहती हूँ पर
ले आई जाती हूँ इस दुनिया में
अनचाही कही जाने के लिये,
शापित जीवन जीने के लिये।
मैं चाहती हूँ पढ़ना पर
नहीं पढ़ाई जाती,
या नहीं चाहती हूँ सीखना -
जो सिखाया जा रहा है,
मेरी इच्छा के विरुद्ध।
मैं जीना चाहती हूँ बचपन,
पर कर दी जाती हूँ बड़ी
मान्यताओं, परंपराओं और
रिवाज़ों के नाम पर
या कहना चाहती हूँ कि
मैं हो गई हूँ बड़ी और समझदार,
तो घोषित कर दी जाती हूँ
छोटी, नासमझ और कमज़ोर।
मैं पकाती हूँ वो खाना
जो मुझे नहीं भाता,
पहनती हूँ वो कपड़े
जो मुझे पसंद नहीं,
जीती हूँ वो जीवन
जिससे मेरा मन सहमत नहीं
और अक्सर मरती हूँ कई बार,
सचमुच दम तोड़ने से पहले..........