आप सा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक

01-05-2020

आप सा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक

अभिनव कुमार (अंक: 155, मई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

माननीय प्रधान मंत्री,
जन सेवक, भले मानस, संतरी।
आपको कुछ बताना है,
मैंने भी अब ठाना है।


आप उन्हें भाते नहीं,
कभी रास उनको आते नहीं,
आप मगर अडिग है,
कभी भी घबराते नहीं।
 

उन्होंने आपको कभी नहीं चाहा,
अच्छा काम भी नहीं सराहा।
 

इस विपदा की घड़ी,
आपको हमारी ज़रूरत पड़ी,
आप अगर कहें जो हमको,
हम ख़ुद को लगा देंगे हथकड़ी।

 
लॉकडॉउन क्योंकि देश हित,
निर्भीक संकल्प ना हुए भयभीत,
उन्हें मगर ना आया पसंद,
जो आप करो, वे हैं विपरीत।

 
आपने भेजी उड़ानें बाहर,
आएँ देशवासी सुरक्षित घर,
इसमें भी ना व्यक्त कृतज्ञता,
पत्थर है दिल, ना कोई असर।
 

हज़ारों बसें आपने भिजवाई,
ताकि प्रवासी घर वापिस जाएँ,
इसमें भी निकालें दोष,
जोखिम क्योंकि भीड़ बढ़ जाए।
 

अपेक्षा आपसे असंख्य अपार,
एक व्यक्ति वास्ते एक हो कार,
एक रात में बनें घर, आएँ कारोबार,
पैसों रुपयों का लग जाए अंबार।

 
जो भी हो,
पर आपसे ना मोह।

 
अर्थव्यवस्था की चिंता छोड़,
आप ना बिल्कुल पड़े कमज़ोर,
हमारी ज़िन्दगी बचाने वास्ते,
थामा देश, लगाई रोक।
 

कई शक्ति शाली बलवान देश,
ना ज़ुर्रत कि रोकें कोई राज्य प्रदेश,
आपने दी पर एक मिसाल,
ऐतिहासिक मानवता का दिया संदेश।
 

फिर भी आप उन्हें नहीं पसंद,
कौन सी मिट्टी के देशद्रोही दानव तन?

 
उन्हें पसंद ना आपका विश्वास,
ना उनको रास आपकी एक बात,
दरिद्र, ग़रीब से आपकी मार्मिक माफ़ी,
कहाँ दफ़न उनके जज़्बात?

 
आपकी निर्धन को आर्थिक सहायता,
ना उनको सुहाती, ना आती हया!
 

आपकी विनती बारम्बार,
घर में रहो, तभी बचेगी जान,
ना माने वे धूर्त गद्दार,
धर्म से जोड़ा, किया दुष्प्रचार।
 

आपकी गुज़ारिश करें प्रकट आभार,
चिकित्सक, पुलिस का धन्यवाद,
उससे उन्होंने किया परहेज़,
सुकामना में खोजे अपवाद।

 
कैसे बिताएँ इक्कीस दिन?
इनकी विशाल विकट उलझन, 
आपसे उम्मीदें अनगिनत,
एक ही पल में निकालिए हल।
 

पड़ोसी, नौकर की ना करें मदद,
स्वार्थ की पार करें ये हद,
आपसे आशा सागर जितनी,
पैसे लगातार आप बाँटें हर घर।
 

अच्छा ख़ासा इनका वेतन,
फिर भी कंगाल, बेचैन मन,
आपसे मगर ये समझें जिन्न,
अर्थ व्यवस्था सँभले बिन हुए विफल।
 

ख़ुद ये आलस के हैं पुतले,
देर से पहुँचे सभा, कार्यालय,
आपसे चाहें अनुशासन पालन,
काला बाज़ारी के लिए कुछ समय दीजिए।

 
इनकी सोच ये ही जानें,
आलोचक, भाव को क्या पहचानें!

 
पुलिस की मार की करते निंदा,
कहते मार दिया हमको ज़िंदा,
भारतीय विमान इनको सकुशल लाया,
तब क्यों नहीं आपको कहते फ़रिश्ता?
 

अवैध शरणार्थी की जानें पीड़ा,
बिना बात पे उछले कीड़ा,
अफ़वाह के दम पे फैलाएँ हिंसा,
सीधे कथन को भी लें ये टेड़ा।

 
सिख, ईसाई, हिन्दू, मुस्लिम,
सेवा भाव में रात और दिन,
इन पर मगर ना रेंगती जूं,
बेअसर, धँसे हैं अंदर ज़मीन।

 
आप इनके लिए बस राजनैतिक,
आँख के अंधे, ना सके हैं देख,
आपकी अच्छाई करें नज़रअंदाज़,
आपकी कमियों पे रहे रोटी सेंक।
 

काश कि आए वो एक पल!
समझें वे आपको मुखिया, अध्यक्ष,
आप परिपक्व, आप हैं दक्ष,
वे कुंठित, हीन, हर समय विपक्ष।

 
आप जितना भी कर लें उपकार, जितनी भी नेकी,
इनकी नज़रों में मगर आप बस ग़लत, बुरे व दोषी।

 
आप लाए विदेश से भारतीय बिन भेदभाव,
तब कहाँ छिपे बैठे थे ये भाई साहब?
विकट परिस्थितियाँ रहा देश झेल,
फिर भी त्रुटियाँ निकालें ये बेहिसाब।

 
आपकी तैयारियाँ बिल्कुल दमदार,
बख़ूबी निभा रहे आप दारोमदार,
ना मानी कभी, ना मानें आप हार,
शत्रु पे सटीक अचूक प्रहार।
 

अपने मुँह मिया मिट्ठू ना आपकी छवि,
काम करते आप, ढोंग नहीं, जैसे रवि,
वे देखें तमाशा जैसे अजनबी,
पेश करते उदाहरण, देख हैरान सभी।
 

आपको मंज़ूर नहीं प्रख्याति,
उद्योगपतियों के प्रयास संग आप हैं साथी,
मार्गदर्शक की कला भली भांति आती,
साथ में लेके चलें, जैसे सारथी। 

 
असामाजिक तत्व, करें देश से जंग,
जिन्हें देख देश शर्मसार, सन्न,
देश को जिन पर आती घिन्न,
ना बक्शें उन्हें आप, पूछें प्रश्न।

 
उन लोगों का यही उद्देश्य,
अराजकता को देनी शय,
आपकी मेहनत और निश्चय,
असफल करना, फैलाना भय।
 

जैसे हैं सारे देश के नागरिक,
इनका भी आप वैसे चाहें हित,
समान अधिकार, बेहतर सेवा,
ये फिर भी ना आपके मीत।

 
चेहरे पे आप ना आने देते शिकन,
चाहे जितनी मुसीबतें, जितने भी विघ्न,
जीवित रहें हम, ज़िंदा हमारा जिस्म,
क़द्र तहेदिल से आपकी लगन।

 
जान अगर, तब ही है जहान,
हमसे आप, और देश की शान,
बहुत ही उम्दा आपका संज्ञान,
आप बदौलत देश महान।
 

इस युद्ध में लक्ष्य नहीं है जीत,
जीवित रहें, यही दुआ और प्रीत,
नुक़सान काम, समय जाए ये बीत,
ऊपर वाले से दुआ और उम्मीद।
 

एक अभिप्राय, सिर्फ़ एक प्रयोजन,
ज़िंदा रहे हर एक एक जन,
विषाणु फैलाए बैठा फन,
जल्दी हारे ये दुश्मन।
 

आपके साथ हैं हम सब,
दीजिए उपदेश, हाज़िर हम,
आपकी बातें सर आँखों पर,
क्योंकि झलकता आपमें दम।
 

अर्थ व्यवस्था पुनः हो जाएँ उत्पन्न,
ज़िंदा रहें हम सहित मन और तन,
तभी खिलेगा ये आँगन,
झूमेगा तब ही उपवन।
 

आपके निर्णय का फल बताएगा समय,
कोई अफ़सोस नहीं मगर हमें,
आपके प्रयत्न हों सफल अजय,
आप पर भरोसा पूरा विश्व करे।
 

हमारा स्वीकार करें निवेदन,
आप करें देश सेवा जन्मांतर तक।
 

हमें आपकी अभी बहुत ज़रूरत,
आप सा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक ....

आप सा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक ....

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