महलों के अंदर क़ैद हैं कैसे सबेरे आजकल
छाये हुए हैं मुल्क में ग़म के अँधेरे आजकल
अब सफ़र आसां नहीं है लूट लेंगे आबरू
राह में मिल जायेंगे ऐसे लुटेरे आजकल
आस्तीनों में जिनकी पल रहे विषधर जहाँ
डर रहे हैं रहनुमाओं से सपेरे आजकल
जब उन्हें मालूम हुआ मैं लिख रहा हूँ फ़ैसले
वो लिफ़ाफ़े भेजते हैं घर पे मेरे आजकल
रोशनी ग़ायब हुई सीना फुलाये है अँधेरा
जुगनुओं के लग रहे गलियों में फेरे आजकल
फ़ाइलों में क़ैद हैं "ब्रज" देखिये सब योजनायें
दफ़तरों में घूसखोरों के हैं डेरे आजकल