(कविता संग्रह - गोधड़ - 2006)
(मराठी आदिवासी कवि वाहरु सोनवणे की कविता का अनुवाद)
अनुवादक: नितिन पाटील

भीगा दु:ख भीगी हरियाली सा
दुःख की हरियाली में बैठ कर
सुख का सपना सँजो कर
अँधेरे से चाँदनी को देखना और
हर दिन का दुःख दिन में भुलाना
कल का दुःख भोगने के लिए
लेकिन, ऐसा और कितने दिन?
जब, चाँदनी ही छिप जाती है
बादलों के पीछे
तब, चमकती हैं बिजली
दुःख के हरे जंगल में

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