सात कचालू

सरोजिनी पाण्डेय (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मूल कहानी: ले सेटे टेस्टे डी'एग्नेलो; चयन एवं पुनर्कथन: इतालो कैल्विनो
अंग्रेज़ी में अनूदित: जॉर्ज मार्टिन (द सेवेन लैम्ब हेड्स); पुस्तक का नाम: इटालियन फ़ोकटेल्स
हिन्दी में अनुवाद: सरोजिनी पाण्डेय

 

एक थी बुढ़िया और एक थी उसकी पोती; एक घर में बस यही दोनों रहते थे। पोती घर का सब काम करती थी, बुढ़िया बाज़ार जाकर सौदा लाती थी। एक दिन बुढ़िया सात कचालू लायी, उसने पोती को वे सातों कचालू दिए और कहा, “बिटिया इनको उबालकर रखना मैं तनिक पड़ोस में घूम कर आती हूँ, तब दोनों बैठकर खाएँगे।”

पोती ने सात कचालू एक पतीले में रखे और उन्हें उबलने चढ़ा दिया। घर की बिल्ली आसपास ही घूम रही थी जब उसे पकते हुए कचालू की ख़ुश्बू आई तो वह चूल्हे के पास आकर बैठ गई और पोती से बोली:

“म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ, म्याऊँ म्याऊँ
 आधा खाए तू और आधा मैं खा जाऊँ”

कचालू की ख़ुश्बू से पोती को भी भूख लग रही थी। उसने एक कचालू निकाला, उसे छीला, उसे आधा किया और आधा बिल्ली को देकर आधा अपने लिए रख लिया। बिल्ली ने आधा कचालू चट कर लिया और अपनी मूँछों पर जीभ फिराती फिर बोली: 

“म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ 
आधा खाए तू और आधा में खा जाऊँ”

अब लड़की ने दूसरा कचालू निकला, उसे छीला, आधा किया और आधा बिल्ली को देकर आधा ख़ुद खा गई। 

बिल्ली का जी अभी भी नहीं भरा था। वह फिर बोली: 

“म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
 आधा तू खाए और आधा में खा जाऊँ”

इस तरह धीरे-धीरे लड़की और बिल्ली ने मिलकर सातों कचालू खा डाले। लड़की ने कचालू खा तो लिए लेकिन अब उसे चिंता हुई कि जब दादी आएगी तो क्या होगा? वह डर गई, उसकी दादी थोड़ा सठिया जो गई थी! 

थोड़ी देर तक वह सोचती रही, जब कुछ और उपाय न सूझा तो दरवाज़ा खोला और जंगल में भाग गई। 

जब दादी घर लौटी तो उसने देखा दरवाज़ा पटापट खुला है, फ़र्श पर कचालू के छिलके पड़े हैं, पतीली ख़ाली पड़ी है। दादी ने पूरे घर में जाकर हर कोना-अंतरा देखना-झाँकना शुरू किया, दादी की पोती का कहीं पता ना लगा। वह बड़बड़ाने लगी, “वह खा गई, सब खा गई, सातों के सातों खा गई।”

वह हर कमरा, बरामदा आँगन दौड़-दौड़ कर देखती जाती और बोलती जाती:

“वह खा गई, सब खा गई सातों के सातों खा गई।”

बूढ़ी दादी बाहर निकल आई, घर के आसपास वह कुछ क़दम दौड़ कर चलती और फिर कहती, “वह खा गई, सब खा गई सातों के सातों खा गई।”

बेचारी बूढ़ी दादी इस सदमे से निकल ही नहीं पा रही थी, वह हर सयय यही बड़बड़ाती रहती, “वह खा गई, सब खा गई सातों के सातों खा गई।”

इधर पोती चलते-चलते जंगल में ऐसी जगह पहुँच गई जहाँ गुलाब की झाड़ियाँ फूलों से भरी हुई थी। इतने सारे गुलाब के फूल देखकर लड़की ख़ुश हो गई। उसने अपने कपड़ों में से फाड़ कुछ डोरियाँ बनाईं और उनसे गुलाब के फूलों को बाँध-बाँध कर अपने लिए गले की माला, माथे का मुकुट और कलाइयों के लिए चूड़ियाँ बना डालीं। यह सब कुछ पहनकर, वह एक पेड़ के नीचे सो गई। 

उधर से एक राजा शिकार खेलते हुआ गुज़रा। उसने गुलाब के फूलों से सजी, पेड़ के नीचे सोती, इस सुंदर नवयुवती को देखा। उसे देखते ही राजा उसके ऊपर लट्टू हो गया। धीरे से उसे जगा कर बोला, “मैं यहाँ का राजा हूँ, उठो! क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” 

पोती बोली, “मैं तो एक ग़रीब लड़की हूँ मैं भला राजा से क्या शादी करूँगी!”

“इस बात की चिंता ना करो, मेरी नज़र में ग़रीब-अमीर सब बराबर है। अगर तुम ‘हाँ’ करोगी तो मैं तुमसे शादी करूँगा।”

लड़की लजा गई और उसने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया। 

“मेरे साथ महल में आओ!”

लड़की ने कहा, “ऐसे कैसे मैं आपके साथ शादी कर लूँगी? घर पर मेरी बूढ़ी दादी हैं।” 

राजा ने दादी को बुलाने के लिए एक गाड़ी भेज दी! शादी की सब तैयारी हो गई विवाह के समय दादी अपनी पोती के पास ही बैठी रही। 

शादी के बाद भोज शुरू हुआ।

दादी-पोती पास-पास बैठीं। दादी के दिमाग़ से अभी भी कचालू की बात निकली ना थी, वह सठिया जो गई थी! उसने पोती के कान में फुसफुसा कर कहा:

“खा गई, सब खा गई, तू सातों के सातों खा गई!”

“दादी चुप रहो!” पोती ने कहा। 

राजा ने यह फुसफुसाहट सुनकर कहा, “तुम्हारी दादी आख़िर चाहती क्या है?” 

“मेरी दादी को भी मेरे जैसे ही कपड़े चाहिएँ!” दुलहन ने बताया। 

राजा ने तुरंत आज्ञा दी, “दादी के लिये नए कपड़े लाए जाएँ!”

दावत के बाद सब लोग राजा-रानी को उपहार देने लगे। इस समय भी दादी से चुप ना रहा गया। वह फिर पोती के कान में फुसफुसायी: 

“खा गई, सब खा गई, तू सातों के सातों खा गई!”

राजा ने फिर अपनी नई-नई मिली दुलहन से पूछा, “दादी अब क्या कह रही है?”

पोती ने कहा, “दादी को मेरे जैसी ही अँगूठी चाहिए!”

राजा ने तरंत आदेश दिया, “दादी के लिए अँगूठी लायी जाए।”

लेकिन दादी अभी भी चुप न रही, वह फिर दुलहन के कान में कहने लगी: 

“खा गई, सब खा गई, तू . . .”

अब तक पोती परेशान हो चुकी थी, वह झुँझला कर बोली:

“यह भुक्खड़ बुढ़िया है, इतना सब कुछ खा-पीकर भी यह अपना ध्यान उन सात कचालुओं पर से नहीं हटा पा रही है।”

राजा भी अपनी शादी के दिन ऐसा कांड होते देख क्रोध से लाल-पीला हो रहा था। उसने रक्षकों को आदेश दिया:

“जंगल में ले जाकर बुढ़िया का सिर धड़ से अलग कर दिया जाए”।

ऐसा ही किया गया। जहाँ बुढ़िया को मार गया था, वहाँ कई बरस बाद एक पीपल का पेड़ उगा, जो आज भी, जब हवा चलती है तो अपने पत्ते फड़फड़ा कर कहता है:

“वह खा गई, सब खा गई 
 सातों के सातों खा गई।”

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