प्रश्न 

15-12-2025

प्रश्न 

डॉ. आरती स्मित (अंक: 290, दिसंबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

धुआँ धुआँ धुआँ 
 . . . 
धुएँ में लिपटी एक चिनगारी
कर रही यात्रा 
सुदूर 
अनंत आकाश की
कि
देखी है उसने
इक ज्योति
अभी-अभी जाती हुई 
और
हो ली पीछे-पीछे
उसके
कि
पूछने थे कई प्रश्न
उसे
उससे
कि 
जानने थे 
कुछ अनकहे बोल के अर्थ
जो खुल न पाए कभी
कि
‘मुक्त ज्योति कितनी मुक्त? 
कब तक मुक्त? 
 . . . 
क्या बढ़ती जाएगी वह
उर्ध्वाकाश
या लौटेगी फिर 
कभी
कहीं 
धारण कर कोई नया परिधान?’ 
 
धुआँ छँटने लगा है
 
 . . . 
नन्ही चिनगारी 
बदलने लगी है राख में
अस्तित्व के प्रश्न से जूझती हुई . . . 
 
(२७/११/२५ को दिवंगत हुईं कथाकार राजी सेठ मैम को समर्पित) 

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