नई स्कीम घोषित: विवाह उपस्थिति सहायता अनुदान योजना
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
“सीज़न के अनुसार एक नई योजना घोषित करनी है,” मंत्रीजी ने फ़रमाया।
“सर, सर्दी शुरू हो गई है तो क्या हम निर्धन लोगों के लिए कंबल सहायता योजना शुरू करें?” एक अधिकारी ने पूछा।
मंत्रीजी ग़ुस्से में बोले, “ख़बरदार, इतने वर्षों से हमारी सरकार है, अब राज्य में कोई निर्धन रहा ही नहीं है। अब तो पूर्वग़रीब लोग अतीत में मिले कंबल दूसरे देशों में एक्सपोर्ट करके देश के वैश्विक व्यापार में योगदान दे रहे हैं।”
दूसरे अधिकारी ने कहा, “सर, मुझे लगता है कि सर्दी शुरू हुई है, इसलिए आप राज्य पुष्टिवर्धन योजना शुरू करना चाहते होंगे, जिसमें राज्य के हर घर को दो-दो किलो घी मुफ़्त देने की योजना होगी।”
फिर मंत्रीजी बिगड़ गए, “ऊँ हूँ, समझो, प्रजा शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर ही अच्छी होती है। बहुत सशक्त और सतर्क प्रजा लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं होती।”
आख़िर तीसरे अधिकारी ने कहा, “सर, जहाँ हमारी समझ की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, वहीं से आपकी शुरू होती है। इसलिए हम सिर्फ़ अधिकारी हैं और आप मंत्री हैं। कृपया अब अपनी नई स्कीम बताइए, ताकि हम तुरंत उसके अमल में लग जाएँ।”
बस, जैसे इसी प्रशंसा की प्रतीक्षा कर रहे हों, मंत्रीजी मुसकराए।
“हाँ तो, सुज्ञजनो, मेरी नई स्कीम है, विवाह उपस्थिति सहायता अनुदान योजना।
“हमारा राज्य चाहे कितना भी समृद्ध हो, लेकिन अभी हमारे नागरिक इतने समृद्ध नहीं हुए हैं कि विवाह के सीज़न में आने वाले सभी विवाह समारोहों में जाने-आने, नए कपड़ों, गहनों, मेकअप, लिफ़ाफ़े या गिफ़्ट देने आदि जैसे सभी ख़र्च उठा सकें।
“इसलिए सरकार चाहती है कि पात्र नागरिकों को निमंत्रण-पत्र प्रति विवाह में उपस्थिति सहायता दी जाए। उसमें भी हम आय सीमा के हिसाब से सहायता देंगे। हाई-नेटवर्थ वालों को एक विवाह में शामिल होने के लिए 10,000 रुपए, मिडिल इनकम वालों को 5,000 रुपए, लो इनकम वालों को 2,000 रुपए सहायता देंगे। बोलिए, कैसा लगा यह आइडिया?”
अधिकारी तो कुर्सी से उछल पड़े। दो-तीन अधिकारी तो सीधे मंत्रीजी के पैर पकड़ने लगे, “बास, अद्भुत आइडिया, एकदम ज़बरदस्त।”
एक अधिकारी तो दिल खोलकर बोला, “सर, वेतन और ऊपर की आमदनी तो सब ठीक है, लेकिन आजकल सच में विवाहों में जाना बहुत महँगा पड़ता है। लोग विवाह में वर-कन्या को आशीर्वाद देते हैं, लेकिन इस स्कीम से तो पूरा समाज आपको आशीर्वाद देगा।”
एक वरिष्ठ अधिकारी चुप रहे तो मंत्रीजी ने मुँह बनाकर उनकी ओर देखा, “बोलिए, आपको क्या आपत्ति है?”
वह अधिकारी बोला, “आपत्ति तो कोई नहीं सर, पर मुझे यह विचार आया है कि अभी भी राज्य में लाखों लोग ऐसे हैं, जिन्हें किसी भी विवाह-सीज़न में एक भी निमंत्रण-पत्र नहीं आता। तो क्या उनके लिए कोई सांत्वना-सहाय योजना बनाई जा सकती है?”
मंत्रीजी उलझ गए और मीटिंग समाप्त कर दी।
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