न मिला

15-12-2025

न मिला

मधु शर्मा (अंक: 290, दिसंबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 
पास कोई बुलाए वो इशारा न मिला, 
थके राही को ऐसा चौबारा न मिला। 
 
एक ही ख़ुशी की तलाश थी मगर, 
ख़ुशियों वाला वो पिटारा न मिला। 
 
निकले थे घर से बहारें देखने मगर, 
एक गुल तक का नज़ारा न मिला। 
 
घिरे रहे लोगों से, फिर भी तन्हा रहे, 
बेनियाज़ अदना सा सहारा न मिला।!
 
मुरादें सभी की पूरी होती देखीं हमने, 
सिर्फ़ हमें ही टूटता सितारा न मिला। 
 
कश्ती थी, पतवार थी मगर डूब गये, 
बिन माँझी क्योंकि किनारा न मिला। 
 
मंज़िल मिल जाती मगर भटकते रहे, 
खोया रहनुमा चूँकि दुबारा न मिला। 

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