मैंने भागकर शादी कर ली

01-12-2025

मैंने भागकर शादी कर ली

जयचन्द प्रजापति ‘जय’ (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैंने भागकर
शादी कर ली
कोई गुनाह नहीं किया

माँ बाप 
कमा पाते थे
रात को इतना
खाना मिलता था
बिना पेट भरे
पानी पीकर
भर जाता था पेट
 
देखी नहीं जा रही थीं
माँ बाप की परेशानियाँ
 
शादी कर ली
भागकर
माँ बाप का बोझ
कम कर दिया
 
उस लड़के ने कहा
शादी कर लो
माँ बाप का बोझ
मैं उठा लूँगा
 
ग़रीबी में
तुम
अन्तः वस्त्र 
कभी न ख़रीद सकी
 
फटे वस्त्रों में
तुम्हारा रूप
धूमिल सा हो गया है
 
मैंने भागकर
इसलिए शादी कर ली
कोई गुनाह नहीं किया
 
दो वक़्त की रोटी
नसीब कर ली
माँ बाप का बोझ कम कर दिया
 
समाज की गंदी निगाहें
अब घूरेंगी नहीं

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