हम वेश्या हैं

01-12-2025

हम वेश्या हैं

जयचन्द प्रजापति ‘जय’ (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हम वेश्या हैं
हमें ले चलो
जैसा चाहे
वैसा नोचो
लील लो चाहे मुझे
 
बिकती हूँ
रोज़
होती हूँ शिकार
शोषण का
जी रही हूँ
ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी
 
हमारा कोई समाज नहीं
कोई अस्तित्व नहीं
कोई परिवार नहीं
ढकेली जाती हूँ
इस गंदे धंधे में
पुरुष मानसिकता ने
जन्म दिया
इस धन्धे को
 
बहुत ढूँढ़ा
नहीं मिला
कहीं भी पुरुष वेश्यालय
बार बार सोचती हूँ
चिंतित हो जाती हूँ

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