चींटी ने सबक़ सिखाया
जयचन्द प्रजापति ‘जय’
हाथी को अपने बड़े होने का बहुत घमंड था। एक बार एक चींटी को देखा तो हाथी ने उसकी खिल्ली उड़ायी लेकिन शान्तप्रिय चींटी ने कुछ नहीं कहा, हाथी ने देखा कि चींटी मेरे खिल्ली उड़ाने का कोई विरोध नहीं किया।
विरोध न करने पर हाथी को और ग़ुस्सा आ गया और बोला कि चींटी मैं तुम्हारी हत्या कर दूँगा। सीधी सादी चींटी सिर्फ़ मुस्कुराती रही। हाथी ने यह सब देखकर चींटी से कहा, “चींटी! इतना भला बुरा मैंने तुमको कहा लेकिन तू मुस्कुरा रही है। क्या बात है?”
चींटी ने कहा, “हाथी तू मूर्ख है। ग़ुस्सा बड़े-बड़ों को खा जाता है। मैं ग़ुस्सा नहीं करती हूँ इसलिए मैं ख़ुश हूँ। मुस्कुरा रही हूँ।”
इतना सुनकर हाथी बेचारा शर्मिंदा हुआ और चींटी की खिल्ली उड़ाने के लिए हाथी ने चींटी से माफ़ी माँगी।