अब कहाँ! 

15-12-2025

अब कहाँ! 

मधु शर्मा (अंक: 290, दिसंबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

हीर-रांझा, लैला-मजनू सा वो प्यार अब कहाँ, 
भाई-भाई, दोस्तों में भी वो एतबार अब कहाँ! 
 
इधर-उधर से चोरी कर रातों-रात कमा रहे नाम, 
एक कर देते दिन-रात, वो फ़नकार अब कहाँ! 
 
ख़रीदो-बेचो खुलेआम आजकल नाम-सम्मान, 
कला-कोविद वाले वो कवि-दरबार अब कहाँ! 
 
दादी, बुआ, ताई की गोद में पल जाते थे बच्चे, 
दुख-सुख में साथ खड़ा वो परिवार अब कहाँ! 
 
फेंक दिया जाता जिन्हें डिसपोज़ल-नैपी* समान, 
बचपन में ले जायें, वो लँगोटिया-यार अब कहाँ! 
 
सोया रहता था चैन से बालक कि माँ मेरी है यहाँ, 
घर भर में गूँजती पायल की वो झनकार अब कहाँ! 
 
नैपी= लँगोट, और लँगोट से मुहावरा बना लँगोटिया-यार

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