हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

मिट्टी का आदर

 

हीराकुंड बाँध हो गया पूरा, जलाशय जाएगा भर 
महानदी-तट के सारे गाँव-गंडे जाएँगे पानी के भीतर। 
 
बार-बार सरकारी घोषणा, गाँव छोड़ जाओ अब 
जो लोग नहीं छोड़ेंगे घर, पानी में जाएँगे डूब। 
 
“फिर सरकार भरना देगी किसकी कितनी जमीन-बाड़ी, 
कुटुंब, सगे-संबंधियों के लेकर, जाएँ जंगल मोह-माया छोड़ी। 
 
जीवन के डर से जो जहाँ भागे इधर-उधर 
जंगल-पर्वत, रहते-सोते, खाते ताल-पत्तर। 
 
पीतापली गाँव वाले चले गए, पर कुछ रह गए 
गाँव के प्रवेश द्वार पर, वे इकट्ठे हुए 
 
दुलना, अकेली, झगड़ालू बूढ़ी, लिए सिर पर भार, 
तेज़ी से वह जा रही थी गाँव से बाहर। 
 
कुछ शरारती लड़कों ने पूछा, बूढ़ी का रास्ता रोककर 
“क्या ले जा रही हो, ख़ाली घरों से सामान चुराकर?” 
 
दुलना बोली, किसी का कुछ नहीं लिया चुरा 
 सात पीढ़ियों की मिट्टी है, जिसे मैं नहीं सकी बिसरा।” 
 
लड़कों ने कहा, “बदमाश बुढ़िया, कैसे करें विश्वास तुम्हार? 
किसका कितना पैसा, सोना, कर रही थी उस मौक़े का इंतज़ार। 
 
“देखो, देखो’–कहकर खींचा बूढ़ी से गठर 
फटते ही गठरी, मिट्टी बिखरी इधर-उधर 
 
लड़के खिलखिला कर हँस पड़े, “बुढ़िया पगला गई है; 
ले, ले अपनी धन-संपत्ति, जो रास्ते पर बिखरी है” 
 
रोते-रोते, दुलना बूढ़ी मिट्टी इकट्ठा करते बोलती है
“असली धन जन्मस्थान की मिट्टी है, जिसे मैं ले जा रही हूँ” 
 
जहाँ मैं मरूँगी, डालना इस मिट्टी को ही 
 दुलना बूढ़ी की आत्मा को शान्ति मिलेगी तभी। 

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