हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

छोटे भाई का साहस

 

दुख पा रही है बड़ी बहू, प्रसव-शूल से रही उछल, 
बच्चा नहीं निकलने से पीड़ा हो रही अति विकल। 
 
गुनिया, वैद्य, तांत्रिकों से मिटा नहीं कुछ कोह 
सुबह से शाम तक दर्द से कराहती रही, आह। 
 
पाटनगढ़ में रही थी मँडरा काल की भूतनी 
किसी घड़ी जाएगा जीवन, नहीं रहेगी रानी। 
 
शक्ति-बाण लगा लक्ष्मण को, रोया राम सेना समेत, 
वैसे ही राजा नरसिंह रोया, अपने पुत्र-प्रजा सहित। 
 
एक बूढ़े ने कहा, “एक उपाय है, लेकिन कम है समय। 
ढेंकी के मुँह पर चावल रखकर कहने का क्या विषय। 
 
“जाना-आना बड़ा दुष्कर, अंधेरी-तूफानी रात्रि, 
वर्षा जल से उफनने लगेगी नदी मायावती। 
 
“मगर मुझे यक़ीन है गाँव बरपदर के कूल, 
सुदुरानी घसियानी मिटा देगी प्रसव-शूल। 
 
जैसे ही बूढ़े की बात सुनी बाबू बलराम देव, 
पाटनगढ़ से बाहर निकले बिना किए ठेव। 
 
मेघ बरसते मूसलधार, चमकती बिजली कड़क 
कैसा घाट, कैसा बाट, डूब गए सब सड़क। 

जमीन-बाड़ी डूब गई अतिवृष्टि के बहाव, 
बिना हिचक, बिना भय, बढ़े बलराम के पाँव। 

तैरकर पार की मायावती, पहुँचे बरपदर 
सुदुरानी को पीठ पर लादकर आए हरबर। 

मगरमच्छ की पीठ पर बंदर की तरह, बलराम की पीठ पर बैठी धाई 
भरी नदी मायावती को पार कर वह आई। 
 
भीगे बदन कंधे पर दाई को लेकर घर में हुआ दाख़िल 
रानी को राहत मिली, हुआ प्रसव सफल। 
 
प्रसन्न मन से देखा राजा ने, हुआ पुत्र-जन्म 
बोले, “हे भाई, तुम हो गुणवान लक्ष्मण। 
 
“अठारह क़िलों की मणि के राजा तुम हीराखंड 
माँगोगे तो दे दूँगा मेरा राज्य भी, पाटनगढ़ 
 
“अगर चाहो, तो दे दो भैया, अंग नदी के उस पार के झार 
बलराम तो बड़ा शिकारी, करेगा जन्तु शिकार। 
 
राज्य के सारे लोगों के मुँह में यही बात, “शाबाश, शाबाश” 
कहानी की तरह यह भी कहानी, “छोटे भाई का साहस।” 

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