हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

पशु और मनुष्य

 

विचारों में लीन, दोपहर को जा रहा था एक दिन, 
सुनाई पड़ा कुत्ते के पिल्ले का रुदन-क्रंदन। 
पास जाकर देखा, हो रही थी डामर-ढुलाई सड़क पर 
गर्मी से पिघलकर डामर फैल रहा था इधर-उधर। 
लटपटा गया छोटा पिल्ला, पाँव गए उसके अकड़ 
बाहर निकालने भागा मैं कोल-तार की सड़क। 
ठेकेदार ने कहा, “मत छुओ, देगा तुम्हें काट 
डरकर लौट गया मैं, आया ख़ाली हाथ। 
उसी समय कहीं से पिल्ले की माँ दौड़ी आई 
मुँह से पकड़, हिल-हिलाकर बाहर घसीट लाई। 
मुझे देखकर कुतिया जैसे कह रही हो, “धिक, मनुष्य, धिक! 
नाम का मनुष्य, विवेकशील होने पर भी विचार नहीं ठीक। 
देखा मौत के मुँह में फँसे मेरे पिल्ले को रोते 
अगर तुम्हारा बच्चा होता, तो हाथ पर हाथ धरे बैठते। 
चला आया वहाँ से अपने आपको कर धिक्कार 
पशु-मनुष्य का भेदभाव, सालता मुझे हरबार। 

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