हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

रंग लगे बूढ़े का अंतिम संस्कार

 

जैसे आया फागुन मास 
बच्चे उत्सुक हुए खेलने को रंग 
ऊपर गली से नीचे गली तक 
मिलते, हँसते, पीते भंग। 
 
पंद्रह दिनों से घूम-घूमकर 
इकट्ठा किया चंदा 
किसी ने चोरी की, किसी ने पीटा माँ को 
करने को यह धन्दा।
  
जमा देंगे इस साल
रात में चिकन-पार्टी, 
भाड़े का बाजा 
नाचेंगे, गाएँगे, आएगा मज़ा। 
 
प्लास के फूल, केले का रस से 
तैयार की पिचकारी 
कोई भाई-भौजी का रिश्ता नहीं 
मारेंगे सब पर आहकरी। 
 
एक तरफ़ रखेंगे पैंट-कुर्ता, 
कहीं न जाए भूल, 
रंग-बिरंगा फगु 
ख़रीददारी का ज़िम्मा लेगा रघु। 
 
उस सुबह चौकीदार 
आवाज़ लगा रहा बार-बार 
“बूढ़ा ज़मींदार मर गया है। 
लेकर आओ फावड़ा और कुदाल। 
 
“गाँव में हुई है मौत, 
नहीं चलेगा आमिष 
तीन दिन तक, हे भाई। 
रंगों का खेल बंद, प्रसाद बंद, पूजा पर भी प्रतिबंध।” 
 
बच्चों की ख़ुशी ख़त्म 
बनाया रंग सब बर्बाद, 
बुझ गया मन, 
“आज ही मरना था बूढ़े को, साला“
 
चमरू, सुक्रू, मंगलू, घन के 
ग़ुस्से का क्या कहना, 
बाहर आए बहाना बना 
मुर्दे पर उँडेल दिया सारा रंग। 
 
रंग लगा बूढ़ा गया मसान, 
उसका जीवन सफल हुआ। 
जैसे भी हो, सारे गाँव का रंग 
लगा एक जन पर। 

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