हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

कामधेनु

 

अधिक, और अधिक होता, 
खोंसे से ऊपर खिसकता 
पवन गति से मन उड़ता, 
अठारह माले का घर बनता। 
 
नौकर सदैव सेवा में रहते, 
दीवार पीछे से भंडार निकलते 
लक्षाधिपति लोग मुझे कहते, 
मेरे वचनों का पालन करते। 
 
मन-पसंद खाना खाता, 
बड़े-बड़े लोगों से मिलता, 
शरीर पर सोना पहनता, 
जेब नोटों से भरा होता। 
 
ऊँचे-ऊँचे बिस्तर, नरम तकिए होते 
आराम से लेटकर खर्राटे लेता, 
आकर्षक सुंदर नवयुवती 
मेरी दुलहन बनती। 
 
जीईं पक्षी चहकती, “रुक जाओ, रुक, 
“मज़बूती से रोको अपनी चाहत 
कामधेनु तृष्णा की गाय, 
पालने से मन की शान्ति जाए।” 

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