हलधर नाग का काव्य संसार

हलधर नाग का काव्य संसार  (रचनाकार - दिनेश कुमार माली)

भ्रम का बाज़ार

 

लगा है भ्रम का बाज़ार, 
आने-जाने वाले लोगों की क़तार 
ठग-चोर, पुरुष-महिला, 
उत्साहित है सारा बाज़ार। 
 
हलवाई कितने मज़े से, 
बेचता दांतरी, मूँगफली की मिठाई, 
चावल के गोले गुड में भिगोकर, 
बनाता चावल की मिठाई। 
 
ककन, पयर, बउल, माल साड़ियाँ 
दांती गेल की लाल-किनार 
चंदन कुरा दस फूलिया 
कपड़े बेचता ‘मनु’ बुनकर। 
 
भाजी, लेहेंटिया, नलिता, मूला 
पाताल घंटा, सुलहा, बैंगन 
सेमी, सारू, भिंडी, मुनगा, ताई, 
फैलाकर बेचती मालिन। 
 
बेचता धूपदान, गिना, गरिया, घड़ा 
पालकी मारकर बैठा कंसारा 
तोलता सामान तराज़ू धर, 
क़ीमत लेता हिसाब लगाकर। 
 
सुनार बेचता सोने की बाली, 
नथिनी, चेन, गुना 
पान-पत्ते की तरह हेयरपिन, कंगन
झूंटिया, बिच्छूड़ी, पाँवों में पहन। 
 
हरदम चलता खरीदना-बेचना
हमेशा बाज़ार में भीड़-भड़कम 
लगी रहती भ्रम-बाज़ार, 
घर लौटते, जब पैसे ख़त्म। 

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