धैर्य की कसौटी

प्रिय मित्रो,

कई बार ऐसी समस्या सामने आती है जिसका कारण आपकी अपनी सफलता होती है। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति चेहरे पर झल्लाहट भी होती है और होंठों पर मुस्कान भी होती है। आज मेरी भी यही अवस्था है।

प्रतिदिन की तरह २८ सितम्बर की सुबह यानी लगभग ४ बजे लैपटॉप पर साहित्य कुञ्ज पर काम करने बैठा। प्रातः चार बजे कम्प्यूटर पर काम आरम्भ कर देना मेरा नियम है, क्योंकि मैं लगभग साढ़े तीन बजे जाग जाता हूँ। चार से आठ तक निरंतर साहित्य कुञ्ज को देखता हूँ। जो ई-मेल के संदेश हैं उनका उत्तर देना, रचनाओं को सहेजना, सम्पादन करके रचनाओं को अपलोड करना, लेखक को सूचित करने इत्यादि में समय बहुत तीव्र गति से निकल जाता है। आठ बजे सुबह के नाश्ते के लिए नीचे जाता हूँ। नाश्ते के बाद बाहर अपने लॉन में पेड़-पौधों की देखभाल और पानी देने इत्यादि में नौ बज जाते हैं। उसके बाद फिर वापिस कम्प्यूटर पर व्यस्त हो जाता हूँ। दोपहर के दो बजते-बजते इतनी थकावट हो जाती है कि मैं लैपटॉप ऑफ़ करके लॉन में निकल जाता हूँ। मेरे घर में मेपल के दो बड़े-बड़े पेड़ हैं। पेड़ की छाया में बैठ कर चिंतन और लगभग समाधि की मुद्रा में एक-डेढ़ घंटा बैठे रहना भी एक नियम सा बन गया है। कैनेडा में प्रायः लोग छह बजे के आस-पास रात का खाना खा लेते हैं, और वही मैं भी करता हूँ। खाने के बाद कभी सैर को निकल गए या फिर लॉन में तब तक बने रहे जब तक मच्छर न काटने लगें और अन्दर जाने को विवश न कर दें। कभी दिल किया तो लैपटॉप खोल कर साहित्य कुञ्ज के आँकड़ों को देख लिया या न भी देखा। आठ बजे के बाद मैं किसी का फोन भी नहीं उठाता और साढ़े आठ या नौ बजते तक सो जाना मेरी दैनिक चर्या का अंतिम चरण है।

२७ सितम्बर को ऐसा ही दिन था। २८ की सुबह को लगभग सात बजे तक तो साहित्य कुञ्ज में कोई समस्या नहीं आ रही थी। सारा काम नियमित गति से हो रहा था। फिर अचानक कम्प्यूटर की प्रतिक्रिया धीमी गति से होने लगी और पन्द्रह मिनट के बाद स्क्रीन पर एरर मैसेज ५०३ आने लगा। हताशा हुई। सब प्रयास किए यहाँ तक कि कम्प्यूटर रिस्टार्ट भी किया। कोई लाभ नहीं– समस्या ज्यों कि त्यों। अंततः गूगल बाबा का सहारा लिया। सोचा कि भटकने की अपेक्षा पहले यह तो समझूँ कि इस एरर संदेश का अर्थ क्या है। पता चला कि सर्वर की समस्या है। तुरंत दो लोगों को व्हाट्सएप पर संदेश भेजा। पहला संदेश स्टेनले परेरा को था जो 21GFox के मालिक हैं, जो मेरी वेबसाइट की होस्टिंग करते हैं, और दूसरा भारत में विपिन सिंह को, जो साहित्य कुञ्ज के डिवेलपर (प्रोग्रामर) हैं। तुरंत प्रतिक्रिया हुई और मुझसे बात करने से पहले ही उन्होंने समस्या के बारे में जानकारी जुटा ली। स्काईप पर बात हुई स्टेनले जी ने अपनी स्क्रीन पर मुझे साहित्य कुञ्ज के आँकड़े दिखाए। होस्टिंग सर्वर पर जो आँकड़ा अधिकतम ४०,००० तक सीमित था, वह साहित्य कुञ्ज के लिए ६०,००० था। यानी ट्रैफ़िक इतना अधिक था कि साहित्य कुञ्ज अन्य वेबसाइट्स की गति को प्रभावित करने लगा था। इसलिए सर्वर ने स्वतः साहित्य कुञ्ज की प्रतिक्रिया के समय को बढ़ा दिया था। और यह समय बढ़ते-बढ़ते यह इतना हो गया था कि स्क्रीन टाईम-आउट होकर एरर ५०३ देने लगा था।

यह आँकड़ा सुनकर मेरी पहली प्रतिक्रिया मुस्कुराने की थी। साहित्य कुञ्ज इतना लोकप्रिय जो हो रहा था। विपिन और स्टेनले ने परिस्थिति की गम्भीरता की ओर ध्यान दिलाया। अब बातें तकनीकी होने लगी थीं, जो आधी मेरे पल्ले पड़ रही थीं आधी नहीं। अंत में निर्णय लिया गया कि सर्वर बदल कर देखा जाए। आज सुबह से विपिन दो सर्वरों पर पूरा डैटा बेस स्थानांतरित करके प्रयास कर चुका है, समस्या ज्यों कि त्यों बनी हुई है बल्कि समस्या और गम्भीर हो रही है। अंततः एक घंटा पहले हमने निर्णय लिया कि इस अंक को, जितना पूरा हुआ है, उतना ही अपलोड करके प्रकाशित कर दिया जाए ताकि साहित्य कुञ्ज के प्रकाशन की नियमितता में व्यवधान न हो। इस अंक के बाद हमें दो सप्ताह मिल जाएँगे कि कोई निदान ढूँढ़ सकें। 

कुछ विचार साहित्य कुञ्ज की तकनीकी टीम के पास हैं, जिन्हें क्रियान्वित करने में कुछ समय लगेगा। दीर्घकालिक निदान के बारे में स्टेनले जी ने बताया कि एक प्राइवेट सर्वर हो सकता है पर उसका ख़र्चा लगभग ४०० डॉलर प्रति माह होगा। अब साहित्य कुञ्ज जैसी अव्यवसायिक साइट के लिए यह असम्भव समाधान है। दूसरा विकल्प है कि 21GFox अपना एक सर्वर साहित्य कुञ्ज के लिए ख़रीद ले और जिसमें उनके अन्य ग्राहकों की होस्टिंग भी की जाए। उसकी बैंडविड्थ भी अधिक हो और जो ख़र्च प्रति माह हो वह ग्राहकों में बाँट दिया जाए। 

यह स्टेनले परेरा का साहित्य के प्रति आदर और प्रेम है कि वह यह सब करने के लिए तैयार हैं। विशेष बात यह है स्टेनले अँग्रेज़ी माध्यम में पढ़े हुए हैं और हिन्दी पढ़ने में उन्हें बहुत समस्या आती है। बस वह यह जानते हैं कि मैं हिन्दी साहित्य के लिए कितना समर्पित हूँ और इसीलिए वह मेरे लिए कुछ भी करने के लिए उद्यत रहते हैं। दूसरी ओर विपिन सिंह हैं, उन्हें साहित्य कुञ्ज को डिवेलप करने में मज़ा आता है। मैं उन्हें चुनौतियाँ देता रहता हूँ और वह हर बार उन पर खरे उतरते हैं। अगले सप्ताह से हम लोग हिन्दी प्रूफ़रीडिंग टूल का परीक्षण आरम्भ करने वाले थे। पहले चरण में यह केवल पंक्चूएशन के लिए होगा। कुछ सप्ताह परीक्षण करने के बाद यह साहित्य कुञ्ज के लेखकों के लिए उपलब्ध हो जाएगा। आप को केवल अपनी रचना इसके बॉक्स में पेस्ट करके क्लिक करना होगा और आपकी पंक्चूएशन ठीक हो जाएगी। अब इस गतिरोध से शायद देर हो जाए। पर होगा अवश्य।

समस्या के बारे में बात करते हुए दोनों तकनीकी दिग्गजों का मत था कि अगर अभी हम लोगों ने निदान नहीं खोजा तो यह समस्या बढ़ने वाली है। क्योंकि जिस तरह से साहित्य कुञ्ज की लोकप्रियता बढ़ रही है, यह तय है कि ऐसा ही होगा। साहित्य कुञ्ज के अपने शब्दकोश पर भी काम होना आरम्भ हो चुका है। आप स्वयं सोचें कि अगर हम यह प्रूफ़रीडिंग का उपकरण सबके लिए उपलब्ध करवा देते हैं तो कितने लोग इसका लाभ उठाएँगे। शब्दकोश के बारे में तो मेरी कल्पनाएँ असीमित हैं। सब समय आने पर ही पता चलेगा कि कितना हम कर सकते हैं। असम्भव शब्द मेरे शब्दकोश में नहीं है। देर से सही पर हम अपने गंतव्य तक पहुँचेंगे अवश्य।

आने वाले कुछ सप्ताहों तक हो सकता है कि आप सब को साहित्य कुञ्ज की धीमी प्रतिक्रिया झेलनी होगी। आशा है कि आपका धैर्य बना रहा और साहित्य कुञ्ज को आप अपना समर्थन देते रहेंगे। बाक़ी रही मेरे संघर्ष की बात, मैं तो अपना जीवन साहित्य को प्रति समर्पित कर ही चुका हूँ। अब हमें अपने धैर्य की कसौटी पर खरा उतरना है।

— सुमन कुमार घई

1 टिप्पणियाँ

  • आदरणीय सुमन जी यह तो बहुत ही खुशी की बात है कि साहित्य कुञ्ज की ख्याति बढ़ रही है, आपकी एकाग्रचित्त लगन को मेरा सादर नमन!! इस समस्या का समाधान तो मिल ही जायेगा, एक बार पुनः आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ!!

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