वीरेन्द्र आस्तिक को 'साहित्य भूषण सम्मान'   

31 Dec, 2019
वीरेन्द्र आस्तिक को 'साहित्य भूषण सम्मान'   
virendra astik ko sahity bhushan samman

वीरेन्द्र आस्तिक को 'साहित्य भूषण सम्मान'   

लखनऊ : लखनऊ में सोमवार (दिसंबर 30, 2019) को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित सम्मान समारोह में विख्यात कवि एवं आलोचक श्री वीरेंद्र आस्तिक (कानपुर) को 'साहित्य भूषण सम्मान' (दो लाख रुपये) से अलंकृत किया गया। आस्तिक जी को यह सम्मान माननीय विधानसभा अध्यक्ष डॉ हृदय नारायण दीक्षित के कर-कमलों से प्रदान किया गया। 

इस अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि साहित्य समाज का मार्गदर्शक होता है। साहित्य का अर्थ है, जिसमें सबका हित हो। साहित्य के माध्यम से ही हम किसी समाज, राष्ट्र व संस्कृति को संबल प्रदान कर सकते हैं। साहित्यकार को समाज की ज्वलंत समस्याओं को रचनात्मक दिशा देने का प्रयास करना चाहिए। जब हम अपनी लेखनी को खेमे, क्षेत्रीयता व जातीयता में बांटने का प्रयास करेंगे, तो इससे साहित्यिक साधना भंग होगी। साथ ही समाज व देश का बड़ा नुक़सान होगा। 

सोमवार को लखनऊ में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा जब आस्तिक जी को 'साहित्य भूषण सम्मान' से सम्मानित किया गया, तब उन्हें और उनके परिवार को बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ  देने वालों का तांता लग गया। नवगीत सृजन एवं आलोचना के ज़रिए ख्याति प्राप्त करने वाले श्री वीरेंद्र आस्तिक मानते हैं कि नवगीत मूलत: गीत की आधारशिला पर ही खड़ा हुआ है। गीत वास्तव में ऋग्वेद से विरासत में मिला है जोकि अपनी यात्रा में कई पड़ावों को पार कर आज समकालीन संदर्भो को समोकर नवगीत के रूप में लोक-जीवन की संवेदना, संस्कृति एवं सरोकारों को मुखरित कर रहा है। आज के दौर में नवगीत के क्षेत्र में लगातार युवा चेहरे आ रहे हैं। इनकी सोच भी काफ़ी अच्छी है और वे चीज़ों को अलग तरीक़े से देख रहे हैं। इसलिए नवगीत इस समय तेज़ी से आगे बढ़ता नज़र आ रहा है।

'धार पर हम- एक और दो' के प्रकाशन से ज़बरदस्त ख्याति पाने वाले आस्तिक जी कहते हैं कि उन्होंने 1964 में एयरफ़ोर्स ज्वाइन किया। इसके बाद 1970 से उन्होंने लेखन का कार्य शुरू किया। 1974 में एयरफ़ोर्स छोड़ने के बाद 1975 से टेलीफोन विभाग में कार्य किया और 2007 में बीएसएनएल से सेवानिवृत्त हुए। वह मुख्य रूप से कानपुर देहात की अकबरपुर तहसील के रहने वाले हैं। 'परछाईं के पांव', 'आनंद! तेरी हार है', 'तारीखों के हस्ताक्षर', 'आकाश तो जीने नहीं देता', 'दिन क्या बुरे थे', 'गीत अपने ही सुनें' आदि काव्य-कृतियों  ने  उन्हें नई ऊँचाई पर पहुँचाया। हाल ही में उनकी आलोचना पुस्तक - 'नवगीत : समीक्षा के नए आयाम' के जरिए उन्होंने नवगीत क्या है, इसे समझने-समझाने का प्रयास किया।


इस अवसर पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सदानंद प्रसाद गुप्त , डॉ. भगवान सिंह, डॉ. मनमोहन सहगल, जलशक्ति मंत्री श्री महेंद्र सिंह, डॉ. अरिबम ब्रजकुमार शर्मा, डॉ. उषा किरण खान , डॉ. कमल कुमार, डॉ. ओम प्रकाश पांडेय, आचार्य श्री श्यामसुन्दर दुबे, आचार्य श्री रामदेव लाल विभोर, डॉ रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' आदि गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।