परमजीत दियोल के काव्य-संग्रह "हवा में लिखी इबारत" का लोकार्पण

29 Jun, 2019
परमजीत दियोल के काव्य-संग्रह "हवा में लिखी इबारत" का लोकार्पण

परमजीत दियोल के काव्य-संग्रह "हवा में लिखी इबारत" का लोकार्पण

हिन्दी राइटर्स गिल्ड की जून गोष्ठी आठ जून को स्प्रिंगडेल लाइब्रेरी के कमरे में यथासमय १:३० बजे बहुत धूमधाम से प्रारंभ हुआ। इस गोष्ठी का मुख्य कार्यक्रम पंजाबी की चर्चित कवयित्री श्रीमती परमजीत दियोल की पंजाबी की चुनी हुई कविताओं के हिन्दी अनुवाद की पुस्तक "हवा में लिखी इबारत" का लोकार्पण था। हिन्दी राइटर्स गिल्ड के लिए यह नई बात नहीं कि वह दूसरी भाषाओं से हिन्दी में अनूदित पुस्तकों के लोकार्पण का आयोजन करे। इससे पहले भी उर्दू, अंग्रेज़ी और पंजाबी से हिन्दी में अनूदित पुस्तकों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करके इन पुस्तकों पर विशेष बातचीत की गई है। भाषाओं के आपसी सम्मिलन के इसी महोत्सव की एक कड़ी थी यह संग्रह! इस संग्रह पर बातचीत करने के लिए हिन्दी और पंजाबी के कई विद्वान इस अवसर पर उपस्थित थे। कुछ विद्वान भारत से भी आये हुए थे।

कार्यक्रम का प्रारंभ चाय और जलपान से हुआ जिसका आयोजन परमजीत जी ने किया था। इसके बाद कार्यभार सँभाला इस गोष्ठी की संचालिका श्रीमती कृष्णा वर्मा जी ने। उन्होंने सबसे पहले भारत से आये हुए कुलविंदर खैरा जी को इस संग्रह पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। कुलविंदर जी ने कहा कि “कविताएँ कई तरह की होती हैं पर उनके मुख्यत: दो प्रकार होते हैं: फ़िक्र की कविता और संवेदना की कविता”! परमजीत जी की अनेक कविताओं के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि “इन कविताओं में फ़िक्र और संवेदना दोनों ही हैं और औरत की त्रासदी से जुड़े गहरे अहसास हैं। फ़ेमनिज़्म यहाँ नारेबाज़ी नहीं बल्कि सहजता से गहरी बात करते हुए आता है, कई कवितायें अपनी छाप छोड़ती हैं जैसे चिडिया, लिहाफ, चूड़ियाँ, औलाद आदि!”

इसके बाद परमजीत जी को अपनी रचनाओं के पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने अलग-अलग भाव की कुछ कविताएँ दर्शकों के समक्ष रखीं जिनमें "मछलियाँ", "पानी के बुलबुलों को बार-बार पकडूँगी" को श्रोताओं ने बहुत सराहा।

"दिशा" संस्था की अध्यक्षा डॉ. कुलविंदर ढिल्लों ने परमजीत जी की रचना यात्रा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि "२०११ में सबसे पहले परमजीत ने कविता लिखना शुरू किया था जो अब तक चल रहा है।" मंचों की सार्थक भूमिका को बताते हुए उन्होंने कहा कि "मंच प्रस्तुतियों से लेखक का आत्मविश्वास बढ़ता है और यह परमजीत का सौभाग्य है कि उन्हें अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करने के लिए पंजाबी और हिंदी के मंच कई बार मिले। औरत की संवेदना से जुड़े कई भावों को इन कविताओं में प्रस्तुत किया गया है, "घर" कविता की विशेष चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस विषय पर प्राय: सभी लेखिकाएँ लिखती हैं। इस काव्य-संग्रह के अनुवादक श्री सुभाष नीरव जी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि ये कविताएँ पंजाबी की नहीं बल्कि हिंदी की ही लगती हैं। उन्होंने "दिशा" की ओर से एक सर्व-भाषीय लिटरेचर फ़ेस्टिवल करने का आह्वान किया।

तत्पश्चात रिंटु भाटिया ने परमजीत जी के बारे में बताते हुए कहा कि वे बहुत उदार महिला हैं और स्नेहपूर्ण कविताएँ ऐसी रचती हैं जैसे मृग की नाभि से कस्तूरी लाना! वे कविताओं का अपने बच्चों की तरह लालन-पालन करती हैं। रिंटु जी ने परमजीत जी की "ज़रूरी" कविता पढ़ी और उनके लिखी ग़ज़ल के शेर गाए।

इसके बाद सुमन घई जी ने सुभाष नीरव जी के अनुवाद की प्रशंसा करते हुए कहा कि अनुवाद का कार्य  सरल नहीं पर सुभाष जी ने यह कार्य बहुत अच्छी तरह किया है। परमजीत की छोटी-छोटी कविताओं में भाषा की शक्ति को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ पंक्तियों के बीच के मौन में भी कविता का भाव बोलता हुआ दिखाई देता है। परमजीत की रचना-प्रक्रिया को औलाद, तलाश और स्व-संवेदना के तीन हिस्सों में बाँट कर देखते हुए सुमन जी ने कई कविताओं के उदाहरण दिए और इस काव्य-संग्रह में संकलित कविताओं के व्यापक परिप्रेक्ष्य की चर्चा की।
आशा बर्मन जी ने इस संग्रह की कविताओं की बिहारी की कविताओं से तुलना करते हुए कहा कि "ये देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर" की विशेषताएँ लिए हुए हैं। इस संग्रह में लिखी भूमिका में भावों की गहनता और भाषा के सौन्दर्य की भी उन्होंने चर्चा की।

श्री रामेश्वर हिमांशु "काम्बोज" जी किन्हीं अपरिहार्य कारणों से अनुपस्थित थे परन्तु उन्होंने अपनी समीक्षा लिख कर भेजी थी। उन्होंने परमजीत जी की कविताओं को मनोजगत के दरवाज़े खोलती हुई कविताएँ कहा जो मन के अंदर झाँकती हैं। इन रचनाओं में हर चीज़ और संबंध को गहराई से देखने की प्रवृति और उसी तरह की गहन अभिव्यक्ति को उन्होंने विशेषत: रेखांकित किया। सुभाष जी के अनुवाद की प्रशंसा भी उन्होंने की।
इसके बाद डॉ. शैलजा सक्सेना ने उपस्थित लोगों को आने के लिए धन्यवाद देते हुए परमजीत जी की रचनाओं में निजी संवेदना के विषयों के अतिरिक्त उपस्थित सामाजिक चिन्ता और बदलते हुए समाज के विषय पर लिखी कविताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया कि किस तरह परमजीत जी की रचनाएँ मन और समाज दोनों से गहराई से जुड़ी हुई हैं। 

इन चर्चाओं के बाद कृष्णा वर्मा जी ने परमजीत जी को अपनी रचना-प्रक्रिया पर बात करने के लिए बुलाया। अपने भावनात्मक वक्तव्य में परमजीत जी ने कहा कि न जाने कितने ही दुख, विचार और दृश्य उनके मन में दबे हुए हैं और वही काग़ज़ पर समय-समय पर उतर आते हैं।
इसके बाद इस गोष्ठी के स्वरचित रचनाओं की प्रस्तुति के दूसरे सत्र को प्रारंभ करते हुए कृष्णा जी ने भारत से पधारी दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. विजया सती जी को आमंत्रित किया। उन्होंने गोष्ठी में अपनी उपस्थिति पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि उन्हें कनाडा में इतने समृद्ध साहित्य के होने का पता नहीं था, अब वे इस पर एक लेख लिखेंगी। उन्होंने अपनी एक कविता "बातचीत अपने आप से" भी इस अवसर पर सुनाई। तत्पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज में पंजाबी भाषा और साहित्य की प्राध्यापिका डॉ. कुलदीप पाहवा ने अपनी रचना "समय" का पाठ किया, और साथ ही सुरिन्दरजीत कौर, निर्मल सिद्धू, वरिष्ठ सदस्या कैलाश महंत जी, हरविंदर जी, अखिल भंडारी, प्रमिला भार्गव, नरेन्द्र ग्रोवर और प्रीति अग्रवाल ने अपनी भाव और विचारपूर्ण रचनाओं की प्रस्तुति से दर्शकों का मन जीत लिया। 
कार्यक्रम सुन्दर कविताओं की चर्चा के रचनात्मक आनंद के वातावरण में संपन्न हुआ।  

प्रस्तुति - डॉ. शैलजा सक्सेना