ज़िंदगी से दोस्ती कर लीजिए
निलेश जोशी 'विनायका'जब कुछ भी नहीं है अपना
तो क्यों इतनी फ़िक्र कीजिए
खोलिए खिड़कियाँ सुकून की
और ज़िंदगी का मज़ा लीजिए।
मिलती है ये अपने नसीबों से
राह पर चला तो सही कीजिए
क्यों शिकायत है इस ज़माने से
ज़िंदगी से दोस्ती कर लीजिए।
कभी फूल तो कभी काँटें भी होंगे
पथरीली राहों में चला कीजिए
मुस्कुराने की क़ीमत नहीं कोई
कभी बेवज़ह भी मुस्कुरा लीजिए।
ये दौलत, शोहरत और इज़्ज़त
नशा है ये इसे उतार दीजिए
हर वक़्त लेता है वक़्त भी करवट
थोड़ा वक़्त तो रिश्तों को दीजिए।
जब लिखना हो नया कुछ
पुराना सब पोंछा कीजिए
गुज़र जाती है उम्र तन्हा एक ज़ख़्म से
ज़िंदगी से दोस्ती कर लीजिए।
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