ज़िंदगी
नीलेश मालवीय ’नीलकंठ’ज़िंदगी एक रास्ता है
जिस पर सबको जाना है
कभी मुश्किल से हारकर
कभी हार को मारकर
कभी साथ या कभी अकेले
कभी बस्ती या कभी मेले
कहीं पदचिन्ह मिले
कहीं बनाए निशान
जाना सभी को वहीं
जिसका है नाम शमशान
वहीं आख़री मंज़िल है
वहीं आख़री ठिकाना है
ज़िंदगी एक रास्ता है
जिस पर सबको जाना है
उम्र राह की दूरी है
बढ़ना भी मजबूरी है
इस राह के राही सब तो
जैसे दरखतों की छाया है
किसी से मीठे फल मिले
किसी से काँटों को पाया है
फल उठाकर कंटक हटाकर
पथ को सरल बनाना है
धूप छाँव से आगे बढ़कर
अन्तिम डेरा और लगाना है
ज़िंदगी एक रास्ता है
जिस पर सबको जाना है