ज़िंदगी एक झूला है

01-09-2020

ज़िंदगी एक झूला है

डॉ. भूपेन्द्र हरदेनिया 'मौलिक’ (अंक: 163, सितम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

ज़िंदगी एक झूला है साहब
अगर पीछे जाए 
तो डरो मत
वह आगे भी आयेगा
वह जितना पीछे जायेगा
उतना ही आगे आयेगा
उसी वेग से 
बस हौसला रख
 
रख यक़ीं 
उस ऊपर वाले पर
और करता रह अपना काम 
सहजता से,
 
वे मोटे दरख़्त
उनके पुष्पजों
के मानिंद
जो झेल कर झंझावातों को 
हिलते रहते हैं ख़ुशी से
और गिरकर भी उग आते हैं
कई बार उसी ज़मीं पर,
बस जज़्बा रख
 
जैसे करती रहती हैं 
नन्हीं चीटिंयाँ अपने अंडों
और अपने आहार की
उचित व्यवस्था 
उठाये रहती हैं उनका भार
इधर से उधर, उधर से इधर,
 
वह रौंधी जा सकती 
किसी के पैरों तले
फिर भी करती रहती है 
अपना काम
भयमुक्त होकर
बस हिम्मत रख
 
अमृता
की लताएँ
प्रतिकूल मौसम में
पात हीन होकर भी
रहती हैं पेड़ों पर सवार
अपनी ऊर्जा को करती रहती हैं
सिंचित
और फिर हरी भरी हो जाती हैं
बनती हैँ रोग मुक्ति का उपाय।
बस भाव रख
 
होते हैं कई बार
कई काम 
धीरे-धीरे
धीरज से
बस धैर्य रख
 
हमेशा से दुनिया
उम्मीदों पर
क़ायम रही है
बस उम्मीद रख 
 
दैदीप्यमान नक्षत्र
ग्रह, तारागण
जिनकी चमक
ग्रहण से कम हो
जाती है,
लेकिन प्रतिभा कहाँ
छुपती है
अधिक समय तक
वे निकल आते हैं
फिर
अपनी तेजोमयता
और 
शीतलता के साथ
बस चाहत रख
 
क़हर फैलता है
तो फैलने दे,
फैला है
यह हर युग में,
और 
हर बार-अमानव
इसे
फैलाते रहेंगे,
मानव बन
रख दूरियाँ
सम्भल कर चल
तैयारी रख
निकल
बस सावधानी रख
 
सूखी लकड़ी नहीं है तू
जो टूट कर गिर जायेगा
समय का इंतज़ार कर
झूले के वेग की तरह 
ही 
सूद समेत
सब मिल जायेगा,
बस आस रख
 
ज़िंदगी एक झूला है साहब
पीछे जायेगा 
तो आगे भी ज़रूर आयेगा।
उसी वेग से
हवा की तरह 
हल्का होकर। 

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