ज़िंदगी

संजय वर्मा 'दृष्टि’ (अंक: 190, अक्टूबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

बहुत दूर जाने
बहुत दिनों बाद
ज़िंदगी में मिलने पर
ऐसे ढुलकते आँसू
जैसे गालों पर पड़ी हो ओस
तब भीगता है मन।
 
उन आँसुओं में से
कुछ आँसू ऐसे भी
जो बचाकर रखे
यादों की किताबों में
जब याद आयी
खोली किताब
ज़िंदगी के क़िस्से
अक्षरों में लिखे
आँसुओं में घुल गए
धुल गए।
 
वक़्त को दोहराता
वसंत का मौसम
हर साल आता
मीठी आवाज़ कोयल के संग
जो मन की किताब के कोरे पन्नों में
टेसू की स्याही से
लिखने लग जाता 
ज़िंदगी के प्रेम के गीत।

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